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उत्तराखण्ड ब्रेकिंग : हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर के रास्ता बदलने की बड़ी घटना सामने आ रही है

उत्तर नारी डेस्क

उत्तराखण्ड में 2013 में आई भीषण तबाही हो या फिर पिछले साल चमोली जिले में आई आपदा इस चीज़ से हर कोई वाकिफ है कि जब भी आपदा आयी है। उसका सीधा नुकसान जनहानि या पशुहानि पर पड़ा है। अब बड़ी खबर यह आयी है कि उत्तराखण्ड के हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों ने अचानक रास्ता बदल

लिया है। यह पहली बार है कि हिमालय के ग्लेशियर में इस तरह के बदलाव की जानकारी मिली है। देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक कालाचंद साईं ने बताया कि अचानक पानी से तबाही का मंजर देखने को मिलता है। एक बार फिर उत्तराखण्ड के पहाड़ों पर खतरे की घंटी बज रही है। पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी इलाकों में एक ग्लेशियर ने अपना रास्ता बदलकर दूसरे के साथ मिला लिया है। दोनों ग्लेशियरों का मिलना भविष्य के लिए खतरा पैदा कर सकता है। 

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आपको बता दें यह नया अध्ययन देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों की टीम ने किया था जो जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इस पांच किलोमीटर के लंबे ग्लेशियर, जो युति युक्ति घाटी के चार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है, ने अचानक अपना प्रमुख रास्ता बदल दिया, टेक्टोनिक गतिविधि के कारण उत्तरपूर्व की ओर बहने वाला ग्लेशियर छोटा हो गया था। वह दक्षिण पूर्व की ओर बहने लगा और अंततः अपने पास के सुजुर्कचंकी ग्लेशियर से मिल गया है। वैज्ञानिक इसकी वजह एक बड़ी जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ टेक्टोनिक प्लेट में अंदरुनी हलचल को मान रहे हैं। वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों डा. मनीष मेहता, राहुल देवरानी, खयींगशिंग लुइरी और विनीत कुमार ने पिथौरागढ़ के काली गंगा घाटी में यह शोध सेटेलाइट, रिमोट सेंसिंग, जीपीएस तकनीक व पुराने जूलॉजिकल नक्शों की मदद से किया। शोध में पाया कि एक अनाम ग्लेशियर अपनी घाटी में आगे न जाकर दूसरी घाटी के क्षेत्र में प्रवेश कर गया है।

तो वहीं, कालाचंद साईं के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी क्षेत्र में काफी परिवर्तन हो रहे हैं। साल 2013 में आई आपदा के समय जो ग्लेशियर टूटा था,  उसकी और इसके हालातों में अंतर है। इस ग्लेशियर की टूटने की आशंका और इससे पैदा होने वाले खतरे के बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है।  इस पर और शोध और अध्ययन जारी है। 

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बताते चलें ग्लेशियर उच्च हिमालयी में पर्वतीय ढलान व घाटी तक सीमित रहते हैं। ग्लेशियर से ही नदी घाटी क्षेत्र विविध खनिज, वनस्पति, जीव जंतु, जैव विविधता के रुप में विकसित होता है, नदियां सदानीरा रहती हैं, प्राकृतिक जल धाराओं का निर्माण होता है। परन्तु अगर हिमालयी क्षेत्र में काफी परिवर्तन होते रहे तो इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा जिससे ग्लेशियर के मार्ग बदलने से उसके निचले हिस्से की घाटी क्षेत्र की वनस्पति व जीवों के विकास प्राकृतिक जलधाराएं समाप्त हो जाएंगी, सहायक नदियां लुप्त होंगी। जबकि दूसरी घाटी में नए जल स्रोतों का जन्म होगा, नदी घाटी क्षेत्र को अधिक पानी मिलेगा, नदी का प्रवाह तंत्र मजबूत होगा।

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