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उत्तराखण्ड की राजनीति में पहली बार हरक सिंह रावत नहीं लड़ेंगे विधान सभा चुनाव

उत्तर नारी डेस्क 

उत्तराखण्ड की राजनीति में हमेशा से सुर्ख़ियों में बने रहने वाले नेता हरक सिंह रावत राज्य गठन के बाद तीन दशक के चुनावी इतिहास में पहली बार विधान सभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह उनके राजनीतिक करियर में पहली बार होगा जहां वह चुनाव लड़ने के बजाए लड़वाने की भूमिका में होंगे। 

बता दें भाजपा से विदाई और कांग्रेस में शामिल होने के बाद उनके चौबट्टाखाल से चुनाव लड़ने की अटकलें शुरू हो गईं थी। चर्चा यह भी थी कि शायद वह डोईवाला से चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन गुरुवार को कांग्रेस ने सभी 70 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी और इसके साथ ही हरक सिंह के चुनाव लड़ने की संभावनाएं भी खत्म हो गईं और आज शुक्रवार को नामांकन का आखिरी दिन भी रहा। जहां लैंसडौंन सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अनुकृति गुंसाई ने अपना पर्चा दाखिल किया। यह तीन दशक की चुनावी सियासत में पहली बार हुवा है कि हरक सिंह रावत चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। खुद हरक सिंह रावत का भी कहना था कि पार्टी यदि चुनाव लड़ने के लिए कहेगी तो वह चुनाव लड़ेंगे। लेकिन हरक सिंह रावत को कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं बनाया। हालंकि कांग्रेस ने हरक की पुत्रवधु अनुकृति को कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर लैंसडौंन सीट से मैदान में जरूर उतारा है। 

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हरक सिंह रावत का उत्तराखण्ड की राजनीति में सियासी सफर 

हरक सिंह रावत तीन दशक से चुनावी राजनीति में हैं। 1991 से अभी तक वे करीब छह बार पार्टी बदल चुके हैं। वर्ष 1991 से लेकर 2022 के बीच उनका हर राजनीतिक पार्टी में रुकने का औसत समय पांच साल है। वे अधिक समय तक एक पार्टी में नहीं रुक पाते हैं। वर्ष 1991 से जिस भाजपा के टिकट पर वे दो बार विधानसभा पहुंचे। उसी भाजपा को वर्ष 1996 के चुनाव में उन्होंने नमस्ते कर दी। 1996 के चुनाव में वो जन मोर्चा पार्टी बनाकर मैदान में उतरे और चुनाव हारे। इसके बाद वो हाथी की सवारी करते हुए बसपा में शामिल हो हुए और यूपी में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष बने। जैसे ही उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ और 2002 में राज्य के पहले चुनाव हुए तो हरक कांग्रेस में शामिल हो गए। जहां वह 2002 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लडे और उन्होंने 2002 में लैंसडौन सीट से चुनाव जीता। 2007 में भी वह लैंसडौन से चुनाव जीते। 2012 में उन्होंने रुद्रप्रयाग से चुनाव लड़ा और जीता। वहीं 2016 में वो फिर पार्टी बदल लिए और भाजपा ज्वाइन कर 2017 के चुनाव में कमल के फूल सिबंल पर चुनाव लड़ते हुए 2017 में कोटद्वार विस से चुनाव जीते। अब बामुश्किल जब हरक के पांच साल पूरे हुए तो उन्होंने फिर अब 2022 में कांग्रेस ज्वाइन कर ली है। इस तरह वह 30 सालों में औसतन एक राजनीतिक पार्टी में पांच साल का समय गुजारते हैं। हरक सिंह रावत की ख़ास बात यह रही कि वह कभी सीट रिपीट नहीं करते थे।

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