उत्तर नारी डेस्क
मां और बेटे का रिश्ता क्या होता है यह एक मां से ज्यादा और कौन जान सकता है। मां बच्चे को पैदा करने से पहले उसे अपनी कोख में 9 महीने तक रखती है। बच्चे के पैदा होने के बाद उसका पालन-पोषण तब तक करती है जब तक वह अपने पैरों में चलने के लायक नहीं हो जाता और एक मां अपने बच्चे की खुशी के लिए अपनी खुशियां तक उसके लिए न्यौछावर कर देती है। लेकिन बच्चा अगर अपनी मां से बिछड़ जाए, अलग हो जाए तो उस मां के दिल में क्या गुजरती है उसका दर्द क्या होता है यह तो एक मां ही समझ सकती है। कुछ ऐसी घटना बागेश्वर जिले से सामने आई है। यहां 30 साल से मां से अलग हुआ उसका बेटा उसे वापस मिल गया और यह मुमकिन हुआ श्रद्धा फाउंडेशन संस्था की मदद से।
30 वर्षों से लापता उत्तराखण्ड के बागेश्वर जिले बागेश्वर जिले के दुग नाकुरी तहसील के सुरकाली गांव निवासी 45 वर्षीय दिनेश पुत्र गोविंद गिरि अपनी मां के पास वापस लौट आया है। सालों से बेटे के लिए तड़प रही मां ने उसे सामने देखा तो आँखों से आंसू आंसू बहने लगे। कसकर गले लगाकर फूटफूट कर रोती रही, कुछ ऐसी ही हालत बेटे की भी थी। वहीं, बेटे को लाने वाली टीम को बुजुर्ग मां ने भर भर कर आशीर्वाद दिया। बता दें कि गोविंद 15 साल की उम्र में घर की माली हालत को सुधारने के लक्ष्य को लेकर 1992 में घर से नौकरी करने के लिए निकल पड़ा था। वो तो घर से नौकरी की तलाश में निकल पड़ा। जिसके बाद ना तो वो खुद आया और ना ही कहीं से उसकी खबर। लेकिन शायद ही ऐसा कोई दिन गुजरा हो, जब उसकी मां जानकी देवी ने उसके आने की आस छोड़ी हो। उन्हें पूरा भरोसा था कि बेटा जरूर लौट आएगा।
मिली जानकारी के मुताबिक, 19 जून 2021 में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले से दिनेश को स्नेह मनोयात्री पुनर्वसन केंद्र अहमदनगर की टीम ने रेस्क्यू कर सड़क पर बदहवास हालत में बरामद किया था। जिसके बाद मनोचिकित्सक डॉ. नीरज करंदीकर की देखरेख में उसका इलाज किया गया। यहां से दिनेश का अपना घर आश्रम, दिल्ली में शिफ्ट किया गया। जहां पर श्रद्धा रिहैबिलिटेशन फाउंडेशन के ट्रस्टी और रैमन मैग्सेसे अवार्डी डा. भरत वाटवानी के अधीन उसका मानसिक उपचार हुआ। वहां के सोशल वर्कर नितिन और मुकुल ने दिनेश की काउंसिलिंग की। वहीं, जब दिनेश पूरी तरह से ठीक हो गया था तो संस्था के कार्यकर्ताओं द्वारा उससे उसका नाम और पता पूछा गया, तब उसने अपना नाम दिनेश गिरि और पता बागेश्वर जिले के दुग नाकुरी तहसील के सुरकाली गांव का बताया। तब से संस्था उसको परिजनों से मिलवाने की तैयारियों में जुट गई थी। वहीं, जब श्रद्धा फाउंडेशन संस्था से जुड़े बरेली के मनोवैज्ञानिक शैलेश कुमार शर्मा और विधि अर्पिता सक्सेना उनको घर लेकर पहुंचे तो गांव वालों का हुजूम उमड़ पड़ा। टीम ने बताया कि वह मानसिक रूप से परेशान था। संस्था उसका उपचार कर रही है। दिनेश की मां ने कहा की मुझे मेरे भगवान पर पूरा भरोसा था कि वह एक दिन मेरे बेटे को मेरे पास जरूर लौटा देंगे। भगवान ने मेरी सुन ली और मेरा बेटा लौट आया।
