उत्तर नारी डेस्क
देवभूमि उत्तराखण्ड अपने प्राकृतिक सौंदर्य, जैव विविधता और वन्य जीव, पशु पक्षी की वजह से जाना जाता है। इसी क्रम में अब भारतीय उपमहाद्वीप में कभी-कभार आने वाली प्रजाति स्मू डक को पहली बार उत्तराखण्ड में देखा गया है। जिसे कॉर्बेट फाउंडेशन (टीसीएफ) के शोधकर्ताओं टीम द्वारा देखा गया है। स्मू डक का पहली बार उत्तराखण्ड में दिखाई देना पक्षी प्रेमियों में उत्साह वर्धक जैसा हैं।
इस संबंध में डा. बर्गली बताते हैं कि यह एनाटिडे परिवार से संबंधित है और मर्गेलस वंश की एकमात्र जीवित प्रजाति है। नर मुख्य रूप से सफेद होता है, चेहरे पर काला धब्बा और काली पीठ होती है। जबकि मादा ज्यादातर भूरे रंग की होती है। जिसका लाल-भूरा सिर, चोंच का एक सिरा मुड़ा हुआ तथा किनारे से दांतेदार होता है। इस प्रजाति के पक्षी की लंबाई 36-44 सेमी और वजन लगभग 500-800 ग्राम तक होता है। यह मादा नर की तुलना में छोटी होती हैं। यह प्रजाति एक से चार मीटर की गहराई तक गोता लगाकर जलीय पौधों, कीड़ों, घोंघे, मेंढक और मछली आदि का भोजन करती है।
वहीं, जानकारी अनुसार स्मू डक रामनगर क्षेत्र के अंर्तगत तुमडिय़ा जलाशय में पहली बार देखा गया हैं। स्मू, मर्गेन्सर बतख की सबसे छोटी प्रजाति है। यह मूल रूप से यूरोपीय पक्षी है। भारतीय उपमहाद्वीप में यह कभी-कभार दिखाई देती है। टीसीएफ पिछले 15 वर्षों से अधिक समय से तुमरिया, बौर और हरिपुरा जलाशयों में प्रवासी जलपक्षी की स्थिति की लगातार निगरानी कर रहा है। वर्तमान में तुमडिया में कुल 64 जल निर्भर प्रजातियाँ और 18 जलपक्षी प्रजातियां निवासी है। पूर्व में भी टीसीएफ के शोधकर्ताओं ने 2012 में उत्तराखण्ड से दुर्लभ बीन गूज को पहली बार देखा था।
वहीं अब कार्बेट फाउंडेशन के निदेशक डा. हरेंद्र सिंह बर्गली के नेतृत्व में शोधकर्ता दीप्ति पटवाल, इदरीश हुसैन और चंद्र शेखर सुयाल की टीम ने तुमडिय़ा जलाशय में इस प्रजाति को पहली बार दिसंबर 2021 के अंतिम सप्ताह में देखा था। पुष्टि करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आइयूसीएन) डक विशेषज्ञ समूह के साथ तस्वीरें साझा की गई थी।
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