तान्या रावत

ऋग्वेद में उत्तराखण्ड को देवभूमि कहा गया है। ऐसी भूमि जहां देवी-देवता निवास करते हैं। उत्तराखण्ड में देवी-देवताओं के कई चमत्कारिक मंदिर हैं। इन मंदिरों की प्रसिद्धि भारत ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैली हुई है। देवभूमि उत्तराखण्ड को देवों के देव महादेव की तपस्थली कहा जाता है। यहां के कण-कण में भगवान भोलेनाथ निवास करते हैं। यहां के प्रत्येक पहाड़ की चोटी पर आपको कोई ना कोई शिव मंदिर मिल जाएगा। इन्हीं तीर्थस्थानों से जुड़ी देवताओं से संबंधित अनेक कथाएं और लोकगाथाएं भी आपको सुनने को मिलेंगी जो कि दुनियाभर में प्रचलित हैं। देवों के देव महादेव के महत्वपूर्ण पंच केदार हो या फिर छोटे बड़े मंदिर हर किसी का अपना एक महत्त्व व पौराणिक मान्यता है। आज हम आपको भोलेनाथ के एक ऐसे ही पौराणिक व ऐतिहासिक मंदिर ताड़केश्वर महादेव के बारे में बताएंगे। जो कि पौड़ी जिले के जयहरीखाल विकासखण्ड के अन्तर्गत लैंसडाउन डेरियाखाल – रिखणीखाल मार्ग पर स्थित चखुलाखाल गांव से 4 किलोमीटर की दूरी पर देवदार के वृक्षों बीच एक बेहद ही खूबसूरत जगह में मौजूद है ताड़केश्वर भगवान का मंदिर। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। जो कि समुद्र तल से 2092 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित विष गंगा व मधु गंगा उत्तर वाहिनी नदियों का उद्गम स्थल भी ताड़केश्वर धाम में माना गया है। मंदिर परिसर में मौजूद चिमटानुमा व त्रिशूलनुमा देवदार के पेड़ श्रद्धालुओं की आस्था को प्रबल करते हैं। मंदिर प्रांगण लगभग 5 किमी चौड़ाई में फैला हुआ है। मंदिर के आस पास कई छोटे छोटे झरने है, जो निरन्तर बहते रहते है। ताड़केश्वर भगवान की पूजा 1 साल में 4 बार होती है, महाशिवरात्रि के दिन मंदिर की छटा देखते ही बनती है। महाशिवरात्रि के अवसर पर दूर दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं। तथा भगवान ताड़केश्वर से अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए अर्जी लगाते है।
ताड़केश्वर महादेव की पौराणिक कथा
ताड़कासुर नामक एक राक्षस था। जिसने महादेव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इस जगह पर कई वर्षों तक घोर तपस्या की थी। महादेव ने ताड़कासुर के त्याग, भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उसे मनचाहा वार मांगने को कहा। ताड़कासुर ने महादेव से अमरता का वरदान मांग लिया। महादेव ने कहा कि यह वरदान प्रकृति के नियमों के विरूद्ध है मैं यह वरदान तुम्हें नहीं दे सकता, तुम कोई और वरदान मांग लो। तब चतुर ताड़कासुर ने महादेव से वरदान मांगते हुए कहा कि भगवान मेरी मृत्यु सिर्फ आपके पुत्र के हाथों ही हो। उसका सोचना था की महादेव तो वैरागी है और वे न कभी विवाह करेंगे और न कभी उनका कोई पुत्र होगा और न ही कभी उसकी मृत्यु होगी। भगवान भोले नाथ ताड़कासुर की तपस्या से प्रसन्न तो उन्होंने यह वर दे दिया। महादेव से यह वरदान मिलने के पश्चात ताड़कासुर ने तीनों लोक में तांडव मचाना शुरू कर दिया। इससे तीनों लोको में हाहाकार मच गया। ताड़कासुर के अत्याचार से परेशान देवताओं, ऋषियों द्वारा महादेव से मदद कि गुहार लगाई गई। लेकिन महादेव की कोई संतान ना होने के कारण महादेव भी कुछ नहीं कर सकते थे। कई वर्षों के अंतराल के बाद जब माता पार्वती ने महादेव से विवाह हेतु कठोर तप किया और अपने शक्ति रूप को जानने के पश्चात महादेव से विवाह किया। विवाह के बाद माता पार्वती ने कार्तिकेय को जन्म दिया। जब कार्तिकेय अपनी युवा अवस्था में आए तो उन्हें अपने इस प्रारभ्त का ज्ञात हुआ और उन्होंने महादेव की मदद से ताड़कासुर का वध कर तीनों लोको को ताड़कासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।
जब ताड़कासुर अपने अंतिम सांसे ले रहा था तो उसने महादेव से क्षमा मांगी, जिस कारण भोलेनाथ असुरराज ताड़कासुर को क्षमा कर देते हैं और वरदान देते हैं कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी। इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलेनाथ ताड़केश्वर कहलाते हैं।
मान्यता
कहते है कि ताड़केश्वर महादेव ने अपने भक्तों के सपनों में आकर कहा था कि यह मंदिर उनका आवास है और देवदार का सुंदरवन उनका उद्यान है। मान्यता है कि एक विशेष जाति के लोगों का यहां आना वर्जित है। इस मंदिर में सरसों का तेल और शाल के पत्ते वर्जित होने की मान्यता है। कहा जाता है जब महादेव असुरराज ताड़कासुर का वध करने के लिए उसके पिछे भाग रहे थे तो जमीन में गिरे शाल के पत्तो में उनका पैर फिसल गया जिस वजह से ताड़कासुर उनके हाथों से छूट गया। इसलिए तब से मंदिर में शाल के पत्तो का लाना वर्जित है।
यह भी कहा जाता कि असुरराज ताड़कासुर का वध करने के बाद महादेव ने इसी जगह पर आकर विश्राम किया था। जब मां पार्वती ने देखा कि विश्राम के दौरान सूर्य की तेज किरणें महादेव के चेहरे पर पड़ रही हैं, तो मां पार्वती ने महादेव को छाया प्रदान करने के लिए चारों ओर देवदार के सात वृक्ष लगाए। ये विशाल वृक्ष आज भी ताड़केश्वर धाम के अहाते में मौजूद हैं।

मान्यता तो यह भी है कि मां पार्वती ने महादेव को छाया प्रदान करने के लिए स्वयं देवदार के वर्क्षो का रूप धारण कर लिया। मंदिर में नारियल और तिल का तेल चढ़ाया जाता है। मुख्य मंदिर के समीप एक अन्य मंदिर है जो मां पार्वती का है। मंदिर परिसर में ही हवन कुंड है जहां पर अग्नि प्रज्वलित रहती है। यहां पर भक्तगण धूप अर्पित करते है।
रोचक बातें
ताड़केश्वर महादेव मंदिर परिसर में एक कुंड भी मौजूद है। जिसके संबंध में मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने बनाया था। वर्तमान में इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों का लाना वर्जित है।
यहां पर एक देवदार का वृक्ष है जो 3 शाखाओं में विभाजित है उसे आप कहीं से भी देखें तो त्रिशूल की आकृति दिखाई देती है। ये पेड़ श्रद्धालुओं की आस्था को और भी ज्यादा मजबूत करते हैं।
कहा जाता है ताड़केश्वर महादेव कभी अपने भक्तों को निराश नहीं करते है। जो लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं वह अवश्य ही पूर्ण होती है। जिस भी भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है वह मंदिर में घंटी चढ़ाता है। प्रवेश द्वार से मंदिर तक इन घंटियों को देखा जा सकता है।
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