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उत्तराखण्ड : पहाड़ों पर खेती को नए मुकाम पर ले जाते दीपक ढौंडियाल

शीतल बहुखण्डी 

जीवन का नियम है कि जो संघर्ष करता है, वह काफी ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है और इसे सही साबित कर दिखाया है। ग्राम खैतोली पोस्ट आफिस चौखाल बैजरो बीरोखाल के दीपक ढौंडियाल ने। जिन्होंने सामूहिक खेती की शुरुआत कर उत्तराखण्ड के विकास को एक नया आयाम दिया है। 

जो पेशे से तो मैकेनिकल इंजीनियर है। परन्तु अपनी नौकरी के साथ वह अपने पहाड़ प्रेम को नहीं भूले। उत्तराखण्ड के विकास में कहां क्या कमी आ रही है? इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने वह 2 साल लगातार पूरे उत्तराखण्ड का भ्रमण करने निकले और जाना कि जिस उत्तराखण्ड में इतने नेचुरल रिसोर्सेज हैं वह राज्य आज भी आखिर इतना गरीब क्यों है? आज भी आखिर ऐसा क्या है जो उत्तराखण्ड के विकास में रुकावट है; तो उन्होंने पाया कि पहाड़ में संसाधनों की कमी और रोजगार का न होना पलायन का मुख्य कारण बन रहा है। जिसके लिए वह वापस अपने गॉव लौटे और वहां स्वरोजगार की मुहीम छेड़ी। ताकि अपने पहाड़ में ही वह सब सुविधा और साधन जुटा सके। वह कहते हैं कि हर महीने अपने व्यवसाय के साथ 10 दिन के लिए वह लगातार गॉव का रुख करते हैं। साथ ही आधुनिक तकनीक से ग्रामीणों को रूबरू कराते  है। 

पहाड़ों में पलायन कम हो और पहाडों में रहने वालों का विकास हो इसी उद्देश्य से वह विगत 6 साल से पहाड़ में ही जैविक खेती के जरिए स्वरोजगार को बढ़ावा देकर अपने गॉव को सशक्त कर रहे हैं। साथ ही इसके लिए वह दिन-रात कड़ी मेहनत कर आधुनिक तकनीक से अन्य ग्रामीणों को भी अवगत करा रहे हैं। उन के साथ मिलकर जैविक खेती से नकदी फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। 

आधुनिक तकनीक से खेती-बागवानी कर रहे दीपक ढौंडियाल बताते हैं कि शुरूआत में उन्हें बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। पानी की समस्या, जंगली जानवरों का फसल खा जाना, चकबंदी न होना। जिसका उन्होंने ग्रामीणों के साथ मिलकर निवारण किया और धीरे धीरे अपने साथ और लोगों को जोड़ उन्हें भी इस मुहीम में शामिल किया। फिर धीरे-धीरे उन्होंने अपने गांव मे रहकर सामूहिक खेती कर यह साबित कर दिखाया कि अपने गांव अपने पहाड़ में अपार सम्भावनाये हैं; बस कोशिश है उन्हें ढूंढ़ने कि और आज वह अपने गॉव में किवी, अखरोट के बगीचे, आलू, सूरजमुखी, लिंगड़े की खेती, और 75 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं और इस प्रसंस्करण यूनिट में दस लोगो को प्रत्यक्ष रोजगार दे रहे हैं।

दीपक ढौंडियाल बताते है कि पहाड़ों में पानी की बहुत कमी है। जिसके लिए उन्होंने रेन गन का इजात किया और अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर आज रेन गन के जरिए बगैर बिजली वह 500 मीटर (आधा किलोमीटर) तक रेन स्प्रे खेत में कर पाते है। जिससे खेतों में पानी की कमी नहीं होती और इस तरह पहाड़ का पानी पहाड़ के काम आ जाता है। 

दीपक ढौंडियाल बताते है कि उनकी इस मुहीम में 25 सदस्य शामिल हैं। जब उन्होंने यह मुहीम छेड़ी तो उन्होंने अपने साथियों को उनका सामर्थ्य होने पर अपने क्षेत्र अपने गॉव जा कर ही उसे आबाद करने को कहा इस स्वरोजगार मुहीम में नीलकंठ की नीलम नेगी, गजवाड़ से आशुतोष घिल्डियाल इत्यादि सदस्य शामिल हैं। जो अपने अपने गांव मे ही रह कर अपने क्षेत्र को आबाद कर स्वरोजगार को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके साथ ही यह सब आपस में मिलकर एक दूसरे की मदद कर तकनीकी विषय से संबंधित और अन्य जानकारी आपस में एक दूसरे के साथ साझा कर साथ निभा रहे हैं। 

दीपक ढौंडियाल कहते हैं वह उन लोगों की विचारधारा को बदलना चाहते हैं जो पलायन कर जाने के बाद कहते हैं कि पहाड़ों में रह कर वहां ज्यादा कुछ नहीं हो सकता। वह उन लोगों को यह साबित कर के दिखाना चाहते हैं कि यहां पहाड़ों में रह कर पहाड़ों के रिसोर्सेज का सदुपयोग कर विकास हो सकता है, साथ ही वह चाहते है कि उनके इस अनुभव का लाभ सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र को मिले। उनका कहना है कि अगर 13 जिलों में 13 लोग भी इस तरह की सोच रखें और काम करें तो बहुत जल्द अपने उत्तराखण्ड के 13 जिले 13 मॉडर्न जिले के रूप में उभर कर सामने जायेंगे। उनका कहना है कि वह आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देकर पहाड़ के युवाओं के लिए रोजगार सृजन कर रहे हैं ताकि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के ही काम आए। 

उनकी इस पहल में गांव की महिलाओं की भी भागीदारी शामिल है। इसके साथ ही उनके साथ काम कर रहे एक 90 वर्षीय बुज़ुर्ग दीपू जी भी शामिल हैं। जो इस उम्र के पड़ाव में भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। वहीं 65 वर्षीय भोजनमाता भी उनके साथ जुड़ी हैं। आखिरकार धीरे-धीरे दीपक ढौंडियाल की मेहनत रंग लाई और आज दीपक ढौंडियाल पहाड़ में स्वरोजगार की मुहीम अपना रहे लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुके हैं। उनका स्वरोजगार माॅडल आज हर किसी के लिए नज़ीर बन चुका है। 

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