Uttarnari header

uttarnari

पौड़ी गढ़वाल : महर्षि चरक की तपस्थली पर हुआ भव्य आयोजन

उत्तर नारी डेस्क

चरेख डाण्डा: दिनांक 01 जून 2022 को महर्षि चरक की तपोस्थली चरेख डाण्डा में एक भव्य शिविर का आयोजन विश्व आयुर्वेद परिषद के तत्वाधान में किया गया। आयोजन स्थल पर गुजरात प्रदेश से आए ब्राह्मणों द्वारा चरक संहिता के पाठ के साथ वैदिक परम्परा के साथ यज्ञ सम्पन्न किया गया। तदोपरान्त भण्डारा एवम प्रसाद वितरण हुआ। हिमालयी देवभूमि के इस क्षेत्र में अनेक महर्षियों के निवास के प्रमाण मिलते हैं। चरेख डाण्डा में महर्षि चरक द्वारा प्रयोग किये जाने वाले खरल को एक छोटे से मंदिर में संरक्षित किया गया है। उसके ठीक सामने बांज का सदियों पुराना बांज का वह भीमकाय वृक्ष भी खड़ा है। जिसके बारे में मान्यता है कि महर्षि चरक इसी वृक्ष के नीचे बैठकर अपना शोध और लेखन कार्य करते थे। इस वृक्ष की एक अद्भुत रचना है। ये वृक्ष एक खुली छतरी के रूप में आकार लिए हुए है। इसी ऐतिहासिक वृक्ष के नीचे समस्त वैदिक पूजन कार्य सम्पन्न किये गए। 

महर्षि चरक ने चरेख डाण्डा को ही अपनी शोध एवं तपस्थली बनाकर यहां चरक संहिता की रचना की थी। हरिद्वार निवासी वनौषधि विशेषज्ञ डॉक्टर विनोद उपाध्याय, केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान परिषद के पूर्व सहायक निदेशक एवम तत्कालीन जड़ी-बूटी सलाहकार उत्तराखण्ड शासन डॉक्टर माया राम उनियाल व प्रदेश सरकार के तत्कालीन आयुष मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने भी उत्तराखण्ड के चरेख डाण्डा को ही महर्षि चरक की तपोभूमि होने की बात कही थी।

रुड़की निवासी जयवीर पुंडीर ने विभिन्न स्रोतों से तथ्यों को एकत्र कर 18 मई 2008 को महर्षि चरक की तपस्थली चरेख डाण्डा नामक गांव की वास्तविकता जानने का अभियान चलाकर बड़ा शोधपूर्ण कार्य किया था। आयोजन स्थल पर उपस्थित पुंडीर ने बताया कि उनका उद्देश्य तथ्य परक साक्ष्यों के साथ ये सिद्ध करना था कि महर्षि चरक इसी क्षेत्र से थे। ये सिद्ध हो जाने पर अब इस क्षेत्र की जड़ी-बूटियों के संरक्षण पर कार्य किया जाएगा। वे भारी जनभावना के जुड़ने से अपनी भविष्य की योजनाओं पर आशान्वित नज़र आए।

पूर्व कमिश्नर गढ़वाल मण्डल एवम पूर्व डायरेक्टर जनरल टूरिस्म सुरेंद्र सिंह पांगती का कहना था कि महर्षि चरक के शोध एवं निवास स्थल पर इस प्रकार के आयोजन किये जाने से जनता को आयुर्वेद को समझना आसान होगा और आयुर्वेदिक पद्धति से किये जाने वाले उपचार पर विश्वास बढ़ेगा, साथ ही इस हिमालयी क्षेत्र में जड़ी-बूटियों से जुड़े व्यवसाय को भी बढ़ावा मिलेगा।

प्रकाश चंद्र थपलियाल (लोकतांत्रिक मोर्चा) ने दुःख जताया कि 2008 से चरेख डाण्डा और महर्षि चरक की कर्म स्थली के विकास के लिए उत्तराखण्ड की किसी भी सरकार ने अपना सकारात्मक रुख़ नहीं अपनाया। उनका कहना था कि इस प्रकार के जितने भी ऐतिहासिक स्थल हैं उनका विकास किया जाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। ऐसा प्रयास हमारी लुप्त होती परम्पराओं को ज़िंदा ही नहीं रखेगा बल्कि नवजागृति आने से हमारे ऋषि मुनियों द्वारा किये गए विभिन्न शोधों को भी संरक्षण मिलेगा। चरेख डाण्डा सिर्फ एक पर्यटक स्थल बनकर न रह जाए। इसके लिए ज़रूरी है कि महर्षि चरक की चरक संहिता के आधार पर स्थानीय जड़ी-बूटियों का संरक्षण किया जाए।

उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून के वाईस चांसलर प्रोफेसर सुनील कुमार जोशी ने बताया कि शीघ्र ही चरेख डाण्डा में एक आयुर्वेद शोध संस्थान का शुभारंभ किये जाने की सरकार की योजना है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें प्रयासरत हैं।

विश्व आयुर्वेद परिषद के तत्वाधान में आयोजित इस भव्य आयोजन में सम्पूर्ण भारत के विभिन्न प्रान्तों के आयुर्वेद के अध्यनरत डॉक्टर्स बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। जब कुछ अध्यनरत युवा डॉक्टर्स से उत्तर नारी प्रतिनिधि ने बात की तो वे बहुत उत्साहित नज़र आए। उन युवाओं का कहना था कि महर्षि चरक की पावन धरती पर आकर आयुर्वेद को समझना अपने आप में एक अलौकिक अनुभव है।

यह भी पढ़ें - पौड़ी गढ़वाल : गुरु गोरखनाथ मेले का हुआ सफल समापन

Comments