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देवभूमि उत्तराखण्ड के इस मंदिर में भगवान शिव का त्रिशूल ताकत से नहीं बल्कि मात्र स्पर्श से है हिलता

उत्तर नारी डेस्क 

गोपीनाथ मन्दिर का नाम सुनते ही हमें भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण स्वरूप का ध्यान आता है लेकिन ऐसा नहीं है। गोपेश्वर में स्थित गोपीनाथ मंदिर का सम्बन्ध शिव से है। गोपेश्वर नगर के बीचों बीच स्थित गोपीनाथ मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। पंचकेदारों में मौजूद चतुर्थ केदार रुद्रनाथ के कपाट बंद होने पर चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ की चल विग्रह डोली को रुद्रनाथ मंदिर के कपाट बंद होने पर गोपीनाथ मन्दिर लाया जाता है। इसी मंदिर में शीतकाल में भगवान गोपीनाथ के साथ बाबा रुद्रनाथ की भी पूजा अर्चना की जाती है।

यह मन्दिर केदारनाथ मन्दिर के समकक्ष प्राचीन बताया जाता है। वहीं वास्तु कला की अगर बात करें तो इसके शीर्ष पर गुम्बद नुमा आकृति है। इस मंदिर का गर्भगृह 30 वर्ग फुट है। जिसमें 24 से द्वारों से प्रवेश किया जाता है। इस मंदिर का निर्माण 9वीं और 11वीं शताब्दी के आसपास संपन्न कत्यूरी राजाओं ने करवाया था। मंदिर में रखे दिव्य त्रिशूल पर मौजूद शिलालेख 12वीं शताब्दी के हैं। पंच केदार तीर्थों के बाद, यह उत्तराखण्ड में सबसे प्रसिद्ध और पूजनीय शिव मंदिर है।

उत्तराखण्ड में हिन्दुओं के सबसे परमधाम चारधाम यात्रा के दौरान यात्री की बदरीनाथ की यात्रा के दौरान गोपेश्वर में स्थित गोपीनाथ मंदिर के भी दर्शन करते हैं। यह मन्दिर वर्ष भर खुला रहता है जिस कारण भक्तों का हमेशा इस मन्दिर में जमावड़ा लगा रहता है

पौराणिक कथा के अनुसार, मंदिर प्रांगण में त्रिशूल भगवान शिव का है। कामदेव (प्रेम के देवता) को मारने के लिए शिव ने अपना त्रिशूल फेंका, जब कालदेव ने भगवान शिव के ध्यान को बाधित करने की कोशिश की। त्रिशूल उसी स्थान पर स्थिर हो गया और तब से वहीं है। ऐसा माना जाता है कि एक सच्चे भक्त का हल्का सा स्पर्श ही त्रिशूल को हिला सकता है जो अन्यथा क्रूर बल के साथ भी स्थिर रहता है।

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