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देवभूमि उत्तराखण्ड का पनीर विलेज, यहाँ दूर-दूर से आती है पनीर की डिमांड

उत्तर नारी डेस्क 

क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में एक ऐसा गांव भी है, जिसका नाम पनीर विलेज है। जी हाँ अपने सही पढ़ा है। उत्तराखण्ड में पहाड़ों की रानी मसूरी से सटा टिहरी जिले के जौनपुर ब्लॉक में स्थित इस गांव का नाम वैसे तो रौतू की बेली है। लेकिन, इस गांव में शुद्धता और गुणवत्ता के साथ पनीर इतना ज्यादा बनाया जाता है कि गांव का नाम ही पनीर विलेज पड़ गया है। करीब 1500 लोगों की आबादी वाले इस गाँव में 250 परिवार रहते हैं और गाँव के सभी परिवार पनीर बनाकर बेचने का काम करते हैं। यही इन लोगों की आजीविका का साधन है। यहां के स्वादिष्ट पनीर की मांग समूचे प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के कई इलाकों तक भी है और वो इसकी मांग करते हैं। 

बताते हैं कि एक वक्त था जब ये गांव पहाड़ के दूसरे इलाकों की तरह पलायन से जूझ रहा था क्योंकि यहां रोजगार के अवसर बहुत कम थे। उस समय ये गांव सिर्फ खेती और पशुपालन पर निर्भर था। गांव के लोग मसूरी और देहरादून जाकर दूध बेचा करते थे। आमदनी का जरिया सीमित था। इस बीच गांव के लोगों ने मसूरी में कुछ लोगों को पनीर बेचते देखा तो स्वयं भी इसमें हाथ आजमाना शुरू किया। उनका तैयार किया पनीर मसूरीवासियों को इस कदर भाया कि धीरे-धीरे इसकी मांग बढ़ती चली गई। अब तो ग्रामीणों ने दूध बेचने की जगह पनीर बनाने पर ही अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया है। 

बताया जा रहा है कि पनीर यहां गांव के किसी एक घर में नहीं, बल्कि हर घर में बनती है। हर घर से पनीर का प्रोडक्शन किया जाता है। यही नहीं यहां पर जब कोई नई बहु आती है तो उसे सबसे पहले पनीर बनाना सिखाया जाता है। ये काम कोई आज से नहीं, बल्कि 1980 के दशक से हो रहा है। रौतू की बेली गांव देहरादून-मसूरी-उत्तरकाशी-टिहरी को जोड़ने वाले थत्यूड़-भवान सड़क के किनारे बसा है। यहां के गांव वाले पारम्परिक तरीके से पनीर बनाते हैं और सुबह सड़क किनारे दुकानों में ही पनीर बेचते हैं। बाजार में एक किलो पनीर 220 रुपये से 240 रुपये किलो में बिक जाता है। जिससे ग्रामीणों को अच्छी आमदनी हो रही है। ग्रामीणों का कहना है कि दूध बेचने की बजाय पनीर उत्पादन में ज्यादा फायदा है। अब तो गांव के युवा भी रोजगार के लिए शहर जाने की बजाय पनीर उत्पादन में रुचि दिखाने लगे हैं। जो कि गांव के लिए अच्छा संकेत है।

गौरतलब है कि रौतू की बेली गांव के ग्रामीणों की मेहनत आज अन्य ग्रामीणों के लिए भी एक बेहतरीन उदाहरण है। जिससे गांव में ही स्वरोजगार को बढ़ावा देकर पलायन को रोका जा सकता है। रौतू की बेली प्रदेश का एक ऐसा गांव है जहां पलायन लगभग शून्य के बराबर है। 

कोटद्वार फुटबॉल खिला़ड़ी आदित्य रावत का प्रदेश की अंडर-19 फुटबॉल टीम में चयन 

कोटद्वार के फुटबॉल खिला़ड़ी आदित्य रावत का चयन प्रदेश की अंडर-19 फुटबॉल टीम में हो गया है। आपको बता दें, वह अब राष्ट्रीय स्तर की फुटबॉल प्रतियोगिता डॉ. बीसी रॉय स्मृति ट्रॉफी में प्रदेश की टीम में प्रतिभाग करेंगे। 

इस संबंध में अकादमी के संचालक सिद्दार्थ रावत ने बताया कि अगस्त माह में आदित्य रावत ने कोटद्वार से जनपद स्तरीय चयन प्रक्रिया पास की। उसके बाद उसने रुद्रपुर ऊधम सिंह नगर स्थित एक निजी खेल अकादमी में अपने द्वितीय चरण का ट्रायल पास किया। 

बताया कि आदित्य ने डीएवी स्कूल कोटद्वार के कक्षा 11वीं के छात्र है। शिबूनगर निवासी आदित्य रावत के पिता सतीश सिंह रावत व्यवसायी हैं। बताया कि प्रदेश की टीम में चयनित हाेने के बाद वह मध्य प्रदेश जबलपुर में होने वाली राष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता में प्रतिभाग करेगा। 


इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में 8 मिनट की शॉर्ट फिल्म “यगौल बडि” चुनी गई 

दुनियाभर में अपनी ख़ास पहचान रखने वाले इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में 8 मिनट की शॉर्ट फिल्म “यगौल बडि” चुनी गई है। आपको बता दें, यह शॉर्ट फिल्म नैनीताल जिले के लालकुआं तहसील के बिंदुखत्ता गांव में रहने वाले युवा फोटोग्रफर हरेंद्र रावत द्वारा डायरेक्ट की गई है। बिंदुखत्ता के गांधीनगर खलियान क्षेत्र के रहने वाले हरेंद्र रावत को बचपन से ही फोटोग्राफी का शौक रहा है। फोटो क्लिक करने के लिए हरेंद्र पहाड़ों में घूमने जाते हैं। इसके चलते ही वो सिनेमाग्राफी और फोटोग्राफी का सुंदर चित्रण करते हैं। इससे पूर्व उत्तराखण्ड सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा फोटोग्राफी प्रतियोगिता में वह प्रथम पुरस्कार जीत चुके हैं। हरेंद्र रावत ने बताया कि उनकी 8 मिनट की शॉर्ट फिल्म “यगौल बडि” इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के लिए चुनी गई है जो की 22 सितंबर को देहरादून में दिखाई जाएगी।

बताते चलें इस शॉर्ट फिल्म “यगौल बडि” में पलायन से खाली होते घर में एक अकेले बूढ़े इंसान को दिखाया है जो सारा काम स्वयं करता है। इस शॉर्ट फिल्म की शूटिंग चमोली जिले के देवाल ब्लॉक के हरनी गांव में की गई है जिसका निर्देशन और कैमरा दोनों ही हरेंद्र रावत ने किया है। यह 8 मिनट की साइलेंट फिल्म है जिसमें कोई डायलॉग नहीं, लेकिन यह अपने दृश्य से ही बहुत कुछ कहती है। अब तो इंटरनेशनल फेस्टिवल के शुरू होने का इंतजार है, जहां दुनिया भर से पहुंचे लोग हरेंद्र की फिल्म को देखेंगे।


इंग्लैंड की नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी में उत्तराखण्ड की शिवांगी का हुआ चयन

उत्तराखण्ड की बेटियां परिवार हों या समाज या फ़िर देश के लिए अच्छी नौकरी पाकर फतेह हासिल कर हर जगह अपनी मेहनत से कीर्तिमान रचती है। तो वहीं, अपनी मेहनत के दम पर आने वाले युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत भी बनती है। इसी क्रम में अब अल्मोड़ा निवासी शिवांगी वर्मा का चयन इंग्लैंड की नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी में मास्टर्स कोर्स के लिए हो गया है। अब शिवांगी वर्मा इंग्लैंड से मास्टर्स इन माल्यूक्लूलर माइक्रोबायोलॉजी से मास्टर करेंगी। 

आपको बता दें, कि इससे पहले शिवांगी वर्मा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीएससी लाइफ साइंस की पढ़ाई की और प्रथम श्रेणी हासिल की है। इसके बाद उन्होंने कुमाऊं विवि से बायोटेक्नालाजी में प्रथम श्रेणी हासिल की है। वहीं, इस साल फरवरी से जून तक चली चयन प्रक्रिया में सफल रहने के बाद शिवांशी को इंग्लैंड की नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी में एंट्री मिली है। वहीं, शिवांशी का परिवार ऑफिसर्स कॉलोनी में रहता है। उनके पिता टीके वर्मा एलआईसी के सेवानिवृत्त विकास अधिकारी हैं। जबकि मां कविता वर्मा गृहणी है।

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