Uttarnari header

uttarnari

उत्तराखण्ड : चैत्र नवरात्रि पर करें मां दुर्गा के इन मंदिरों के दर्शन, खुल जाएगा भाग्य

उत्तर नारी डेस्क 

आज से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। 30 मार्च यानी आज नवरात्रि का पहला दिन है। नवरात्रि नौ दिन का पर्व है, जिसके हर दिन नवदुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। वहीं, जैसे ही आप सब जानते है कि उत्तराखण्ड को देवभूमि कहा जाता है। यहां के कण-कण में महादेव का वास है। शिव शंकर के साथ ही यहां के पर्वत शिखरों और नदी तटों पर मां दुर्गा भी अलग-अलग स्वरूपों में विराजती हैं। देवी के इन मंदिरों को सिद्धपीठों के रूप में भी जाना जाता है। क्योंकि यहां मांगी जाने वाली भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। चैत्र नवरात्र के अवसर पर चलिए ऐसे सिद्धपीठों के बारे में जानते हैं।


मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार 

हरिद्वार शहर में शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं के मुख शिखर पर स्थित मां मनसा देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मनसा का शाब्दिक अर्थ है इच्छा पूर्ण करने वाली देवी। मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री कहा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इसलिए इनका नाम मनसा पड़ा। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजते हैं। 

मान्यताओं के अनुसार, जिस वक्त महिषासुर ने धरती पर आतंक मचाया तो देवताओं ने मां मनसा का अह्वान किया। जिसके बाद मां ने महिषासुर का वध किया। वध करने के बाद हरिद्वार में मां मनसा ने विश्राम किया और तभी से यहां माता का प्रसिद्ध मंदिर है। उस वक्त मां मनसा देवताओं की इच्छा पूरी करती थी और कलयुग में मां मनसा उसके दरबार आने वाले सभी लोगों की इच्छा पूरी करती हैं। 


दूनागिरी मंदिर, द्वाराहाट

वैष्णो देवी के बाद उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट से 15 किमी दूर दूनागिरि में दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ है। दूनागिरी माता का मंदिर और आस्था और श्रधा का केंद्र है। मंदिर निर्माण के बारे में यह कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब लक्ष्मण को मेघनात के द्वारा शक्ति लगी थी, तब सुशेन वैद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था। हनुमान जी उस स्थान से पूरा पर्वत उठा रहे थे तो वहां पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरी का मंदिर बन गया। कत्यूरी शासक सुधारदेव ने 1318 ईसवी में मंदिर निर्माण कर दुर्गा मूर्ति स्थापित की। मंदिर में शिव व पार्वती की मूर्तियाँ विराजमान है।


मां पूर्णागिरि मंदिर (चंपावत)

मां पूर्णागिरि मंदिर टनकपुर से लगभग 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है और यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। पूर्णागिरि में माँ की पूजा महाकाली के रूप में की जाती है। पूर्णागिरि का मंदिर काली नदी के दाएं ओर स्थित है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब माता सती ने आत्मदाह किया, तब भगवान शिव माता की मृत देह लेकर सारे ब्रह्मांड में तांडव करने लगे। भगवान विष्णु ने संसार की रक्षा के लिए माता सती की पार्थिव देह को अपने सुदर्शन चक्र से नष्ट करना शुरू किया। सुदर्शन चक्र से कट कर माता सती के शरीर का जो अंग जहाँ गिरा, वहाँ माता का शक्तिपीठ स्थापित हो गया। इस प्रकार माता के कुल 108 शक्तिपीठ हैं। मान्यता है कि चंपावत के अन्नपूर्णा पर्वत पर माता सती की नाभि भाग गिरा, पूर्णागिरि मंदिर की स्थापना हुई। नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।

 

नैना देवी मंदिर, नैनीताल


नैना देवी मंदिर नैनीताल में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस पवित्र मंदिर में देवी को उनकी दो आंखों से दर्शाया गया है। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। 

हिंदू धर्मग्रंथ में नैना देवी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है। 51 शक्ति पीठों में से एक के रूप में माना जाने वाला ये मंदिर, वो जगह है जहां देवी सती की आंखें गिरी थीं। इसलिए यहां देवी की आंखों के रूप में पूजा की जाती है। 


कसार देवी मंदिर, अल्मोड़ा

अल्मोड़ा में कसार पर्वत पर स्थित कसार देवी मंदिर अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र माना जाता है। यहां देवी मां साक्षात अवतार में आई थीं। कात्यायनी रूप में देवी सबसे पहले अल्मोड़ा के कसार देवी मंदिर में ही प्रकट हुई थी। इसलिए इस मंदिर में नवदुर्गा के छठवें रूप कात्यायनी देवी की कसार देवी मंदिर में पूजा की जाती है।

कहते हैं कि भारत की ये एक एकलौती ऐसी जगह है, जहां चुंबकीय शक्तियां मौजूद हैं। मंदिर के आसपास कई जगह हैं, जहां धरती के अंदर बड़े-बड़े भू-चुंबकीय पिंड हैं।


चण्डी देवी, हरिद्वार

देश में मौजूद 52 पीठों में से एक धर्मनगरी हरिद्वार में नील पर्वत पर स्थित मां चंडी देवी मंदिर में मां खंभ के रूप में विराजमान हैं। जब शुंभ, निशुंभ और महिसासुर ने धरती पर प्रलय मचाया था तब देवताओं ने भगवान भोलेनाथ के दरबार में दोनों के संहार के लिए गुहार लगाई। तब भोलेनाथ व देवताओं के तेज से मां चंडी ने अवतार लिया। शुंभ, निशुंभ इस नील पर्वत पर मां चंडी से बच कर छिपे हुए थे, तभी मां ने यहां पर खंभ रूप में प्रकट होकर दोनों का वध कर दिया। तब से मां इसी स्थान पर विराजमान हैं।


चन्द्रबदनी मंदिर, देवप्रयाग

देवप्रयाग में स्थित मां चन्द्रबदनी मंदिर माता सती के 52 शक्तिपीठों में से एक है जो आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित है। यह टिहरी जिले के चन्द्रकूट पर्वत पर स्थित है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस स्थान पर माता सती के शरीर के अंगों में से धड़(बदन) का भाग गिरा था जिस कारण इस स्थान पर सिद्ध पीठ की स्थापना हुई और इसका नाम चंद्रबदनी पड़ा। इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें किसी भी प्रकार की देवी की मूर्ति नहीं है बल्कि इसके जगह एक काले रंग के पत्थर पर उकेरा श्री यंत्र की पूजा की जाती है और इस यंत्र को कोई भी भक्त हो या पुजारी नग्न आंखों से नहीं देख सकता। जिस कारण आंखों पर कपड़ा बांधकर इस यंत्र की पूजा की जाती है।


सुरकंडा देवी मंदिर, टिहरी

सुरकंडा देवी मंदिर टिहरी क्षेत्र में सुरकुट पर्वत पर लगभग 2757 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में माता काली की प्रतिमा स्थापित है। 

मान्यता है कि कनखल में यज्ञ का आयोजन किया गया था। जिसमें हिमायल के राजा दक्ष ने अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। यह बात भगवान शिव की पत्नी और दक्ष की बेटी शती सहन नहीं कर सकीं और यज्ञ में कूदकर अपनी जान दे दीं। जिसके बाद भगवान ने उनके शरीर को लेकर पूरी पृथ्वी पर घूमे और जहां-जहां शरीर के अंग गिरे वह जगह शक्तिपीठ कहलायी। जहां देवी का सिर गिरा वह स्थान सुरकंडा देवी के नाम से जाना गया।



Comments