उत्तर नारी डेस्क
भारी बारिश, उफनती नदियां और भूस्खलन बरसात के मौसम की पहचान बन गई है। यह मौसम अपने पीछे तबाही का एक दर्दनाक मंजर छोड़ जाता है। यहां हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर बारिश के मौसम में उत्तराखण्ड में ही क्यों भारी तबाही मचती है, क्यों लैंडस्लाइड की घटनाएं ज्यादा होती है।
बारिश के मौसम में उत्तराखण्ड में क्यों मचती है भारी तबाही,
अषाढ़ का महीना शुरू हो चुका है और मॉनसून देश के अधिकांश हिस्सों को अपनी चपेट में ले चुका है। इस बीच पहाड़ों में जबरदस्त बारिश हो रही है। खास तौर से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बारिश तबाही मचा रही है। उत्तराखण्ड में हर साल बारिश के चलते भूस्खलन की घटनाएं सामने आती हैं। भारी बारिश, उफनती नदियां और भूस्खलन बरसात के मौसम की पहचान बन गई है। यह मौसम अपने पीछे तबाही का एक दर्दनाक मंजर छोड़ जाता है।
यहां हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर बारिश के मौसम में उत्तराखण्ड में ही क्यों भारी तबाही मचती है, क्यों लैंडस्लाइड की घटनाएं ज्यादा होती हैं?
प्राकृतिक कारण
भौगोलिक और भूवैज्ञानिक संवेदनशीलता: उत्तराखण्ड में बरसात के मौसम में लैंडस्लाइड से तबाही की सबसे बड़ी वजह इसकी भौगोलिक स्थिति है। यह हिमालय के ऐसे हिस्से में बसा है जहां कि चट्टानें कमजोर और भुरभुरी हैं।
कच्चे और अस्थिर पहाड़: कच्चे और अस्थिर पहाड़ होने की वजह से जब इन पर भारी बारिश होती है तो मिट्टी और चट्टानें आसानी से अपनी पकड़ खो देती हैं। बारिश का पानी अपने साथ इन्हें भी बहाने लगता है जिससे भूस्खलन की घटनाएं होती हैं।
तेज ढलान और गहरी घाटियां: उत्तराखण्ड का अधिकांश जमीनी हिस्सा तेज ढलान और गहरी नदी घाटियों वाला है। भारी बारिश के चलते जब पानी तेजी से इन ढलानों के नीचे आता है तो वह अपने साथ भारी मात्रा में मलबा भी लेकर आता है। इसके चलते नदियों को वाटर लेवल अचानक बढ़ जाता है और बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं।
सिस्मिक जोन में स्थिति: उत्तराखण्ड भूकंप के लिहाज से संवेदनशील जोन 4 और 5 में आता है। इस इलाके में अक्सर छोटे-छोटे भूकंप आते रहते हैं। ये भूकंप चट्टानों को अंदर से और कमजोर कर देते हैं जिससे बरसात के मौसम में उनके ढहने का खतरा बढ़ जाता है।
बदलता मौसम और भारी बारिश: जलवायु परिवर्तन ने उत्तराखण्ड में बारिश के स्वरूप को और खतरनाक बना दिया है। अब इस इलाके में कई दिनों तक हल्की-हल्की बारिश होने के बजाय कम समय में एक ही स्थान पर बहुत अधिक बारिश हो जाती है। इस तरह की मूसलाधार बारिश कमजोर पहाड़ों पर कहर बनकर टूटती है।
बादल फटना: उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाएं आम हैं। जब बादल फटता है तो एक छोटे से इलाके में कुछ ही मिनटों के भीतर अत्यधिक बारिश हो जाती है, जो अचानक बाढ़ और बड़े पैमाने पर भूस्खलन का कारण बनती है। 2013 की केदारनाथ आपदा इसका सबसे भयावह उदाहरण है।
विनाशकारी मानवीय गतिविधियां
तो ये ऐसी प्राकृतिक घटनाएं हैं जो भूस्खलन की वजह बनती हैं। लेकिन भूस्खलन केवल प्राकृतिक वजहों से ही नहीं बोता बल्कि कुछ ऐसी मानवीय गतिविधियां भी हैं जो इन विनाशकारी घटनाओं को आमंत्रित करती हैं। अनप्लांड तरीके से मानवीय विकास ने इस समस्या को और भी गंभीर बना दिया है।
अंधाधुंध निर्माण: उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में पर्यटन और अन्य जरूरतों के लिए नदी किनारों, घाटियों और कमजोर ढलानों पर बिना किसी वैज्ञानिक योजना के होटल, घर और अन्य निर्माण कार्य किए गए हैं। इन निर्माणों की वजह से पहाड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और वे कमजोर होते जाते हैं।
सड़क निर्माण: पहाड़ी इलाकों में आवागमन का सुगम बनाने के लिए पहाड़ों को काटकर सड़कों का चौड़ीकरण किया जा रहा है। उत्तराखण्ड में यह काम जोरों पर चल रहा है। पहाड़ों को काटने के लिए विस्फोटकों का उपयोग और गलत तरीके से मलबा निस्तारण, पहाड़ों के संतुलन को बिगाड़ रहा है, जिससे भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं।
वनों की कटाई: जैसा कि हम जानते हैं कि पेड़ मिट्टी को अपनी जड़ों से बांधकर रखते हैं और पानी के बहाव को कंट्रोल करते हैं। लेकिन उत्तराखण्ड में विकास परियोजनाओं के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से मिट्टी कमजोर हो गई है, जो बारिश के पानी के साथ आसानी से बह जाती है।
- हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट: बड़े-बड़े हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के लिए बनाई गई सुरंगें और अन्य निर्माण कार्य भी पहाड़ों को अंदर से खोखला और कमजोर कर रहे हैं। इसके चलते भी भूस्खलन की घटनाएं बढ़ने लगी हैं।
- कुल मिलाकर अगर हम उत्तराखण्ड में होने वाले भूस्खलन की घटनाओं के बारे में कहें तो संक्षेप में यही कह सकते हैं कि प्रदेश की नाजुक भौगोलिक संरचना, मानसून की प्रचंड मार और अनियोजित मानवीय हस्तक्षेप इसके पीछे एक बड़ी वजह है।