उत्तर नारी डेस्क
दृष्टिबाधित व्यक्तियों को नोटों की पहचान करने में आने वाली कठिनाइयों को देखते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को निर्देश दिया है कि नए नोट जारी करने या छापने से पहले इन चुनौतियों का समाधान किया जाए। न्यायालय ने कहा कि यह न केवल संवैधानिक जिम्मेदारी है, बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्ग की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का अनिवार्य कदम भी है।
चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि केंद्र सरकार और आरबीआई को न्यायालय द्वारा गठित हाई पावर कमेटी की व्यवहारिक सिफारिशों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। न्यायालय ने आरबीआई को निर्देश दिया कि बैंकों को पहले से जारी दिशा-निर्देशों और समिति की सिफारिशों के क्रियान्वयन की सख्ती से निगरानी की जाए।
बता दें, यह आदेश उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिन्हें कोटद्वार निवासी अधिवक्ता रोहित डंडरियाल, ऑल इंडिया कन्फेडरेशन ऑफ ब्लाइंड, ब्लाइंड ग्रेजुएट्स फोरम ऑफ इंडिया और जॉर्ज अब्राहम ने दाखिल किया था। याचिकाओं में मांग की गई थी कि विशेषकर 50 रुपये और उससे नीचे के नोट और सिक्के इस तरह बनाए जाएं कि दृष्टिबाधित लोग आसानी से उन्हें पहचान सकें।
इस संबंध में, पीठ ने कहा कि आरबीआई द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट और समिति की सिफारिशों के आधार पर, नोट जारी करने में हजारों करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं, और प्रचलन में मौजूद मुद्रा को वापस लेने और नष्ट करने में भी काफी लागत और समय लगेगा। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, यह निर्देश दिया जाता है कि जब भी भारत सरकार और आरबीआई नई मुद्रा छापने का निर्णय लें, तो उन्हें उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखना चाहिए।
न्यायालय द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति और आरबीआई की रिपोर्टों की जाँच के बाद, मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि दिव्यांगजनों के लिए डिजिटल पहुँच से संबंधित समस्याओं और चिंताओं का काफी हद तक समाधान कर लिया गया है। इसलिए, समिति की सिफारिशों के साथ-साथ विभिन्न बैंकों को जारी की गई अपनी सिफारिशों का भी ईमानदारी से कार्यान्वयन किया जाना चाहिए।




