उत्तर नारी डेस्क
देवताओं की भूमि के रूप में जाना जाने वाला उत्तराखण्ड अपने शांत वातावरण, मनमोहक दृश्यों और खूबसूरती के कारण ही दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
इसी कारण उत्तराखण्ड को स्वर्ग का दर्जा दिया गया है। अब चाहे, बात यहां की खूबसूरती की करें तो उत्तराखंड की महिलाओं को इतिहास से लेकर वर्तमान जीवन शैली में आभूषणों ने विशिष्ट पहचान देने में एक अहम भूमिका अदा की है। इसी के सम्बन्ध में आज का हमारा विषय है उत्तराखंड के आभूषणों के बारे में सदियों से मानव सभ्यताओं के विकास के साथ-साथ भिन्न-भिन्न प्रकार के आभूषणों का भी प्रचलन रहा है। वर्तमान में यह मानव समाज का एक अभिन्न अंग है जो कि उत्तराखण्ड के लोगो को खूबसूरत और आकर्षित बनाने का कार्य करता आ रहा है।
उत्तराखण्ड में परंपरागत रूप से गहने यहां की स्त्रयों का प्रमुख श्रृंगार रहा है आभूषण धारण करने की परंपरा प्रचलन में रही है। तो जानते है कौन कौन से है ये आभूषण जिन्हें पहन कर यहाँ की महिलाएँ खुद को सुशोभित करती हैं।
1. सिर के आभूषण
शीशफूल : शीशफूल यह महिलाओं द्वारा विशेष अवसरों पर पहने जाने वाला आभूषण है इस आभूषण को पहन ने की परम्परा सदियों से चली आर ही है जो बालों और माथे के बीच की जगह पर पहना जाता है।
माँगटीका - इसके नाम से ही स्पष्ट है कि मांग पर पहने जाने वाला आभूषण। इसे हलकी हुक की सहायता से विवाह तथा विशेष अवसरों पर पहना जाता है।
2. कानों के आभूषण, मुलगी या मुखी (मुंदड़ा), मुर्खली
उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में इन्हें भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। यह सोने या चाँदी के 5 से 10 ग्राम भार तक की होती हैं। पिछले ज़माने मैं यह शुद्ध सोने की ही बनती थी। इन्हें कानों के किनारों पर छिदवाकर पहना जाता हैं। यह व्यक्तिगत सामर्थ्य के अनुसार सोने अथवा चांदी धातु से बनाए जाने वाला आभूषण है।
बाली (बल्ली), कुडल, कर्णफूल के फूल : ये कान के निम्नस्थ भाग में पहनी जाती हैं। चाँदी या सोने से बने इस आभूषण पर खूबसूरत मीनाकारी होती है। कइयों पर तो पुष्प या मोर आदि की आकृति भी बनी होती है। जो देखते ही बेहद खूबसूरत होती है।
गोरख : यह विशेष रूप से पुरुषों का गहना होता है जिसे सोना तथा चाँदी मे धातुओं से बनाया जाता है। शादी-ब्याह के अवसर पर दूल्हे को गोरख दिया जाता है। यह गहना लगभग 10 ग्राम का बना होता है, किंतु आधुनिक समय में यह कहीं न कहीं विलुप्त हो रहा है।
3. नाक में पहने जाने वाले आभूषण
सबसे पहले बात, नथ यानी (नथुली) : सुहाग का प्रतीक के रूप में जाना जाने वाला यह आभूषण कुमाऊँ और गढ़वाल दोनों मण्डलों में बेहद प्रमुख है। कुमाऊँ तथा गढ़वाल दोनों क्षेत्रों में नथ या नथुली को सुहाग का प्रतीक तथा प्रमुख आभूषण माना जाता है। इसकी बनावट मैदानी भागों की नथ से भिन्न होती है। यह अर्द्धव्यास की गोलाकार छल्ले जैसी आकृति की होती है। बात अगर नयी टिहरी गढ़वाल की नथ की करें तो इसकी बनावट सबको पसंद आती है यह अपनी विशिष्ट बनावट और भार के कारण बहुत प्रसिद्ध है। कहीं-कहीं इसे बेसर भी कहा जाता है।
बुलाक : यह भी पर्वतीय क्षेत्रों का विशिष्ट आभूषण है। इसका ऊपरी भाग उल्टे 'U' के आकार के हुक द्वारा जुड़ा रहता है। बुलाक को नाक के मध्य भाग को छिदवाकर ही पहना जाता है।
फूली, फूल (लौंग) : इसे आजकल कील भी कहा जाता है। यह आभूषण नाक की बायीं ओर पहना जाता है। नाम के अनुसार फूल की आकृति का मीना जड़ा हुआ या लौंग के आकार का यह गहना, सुहाग का सूचक है नथ को हमेशा नहीं पहना जा सकता है इसलिए इसके विकल्प के रूप में फूल, फुल्ली अथवा प्रसिद्ध नाम लौंग का प्रयोग किया जाता है।
4. गले में पहने जाने वाले आभूषण
गुलूबंद : यह भी सुहाग का प्रमुख आभूषण है, जो सोने का बना होता है। इसकी खूबसूरत बनावट के कारण यह पश्चिमी क्षेत्रों में भी काफ़ी लोकप्रिय बना हुआ है। इसमें 10 से 12 तक चौकोर कलात्मक स्वर्ण पत्र, मखमल या सनील के चौड़े पट्टे पर लगे होते हैं। इसे गले को छूते हुए पहना जाता है। कुमाऊँ क्षेत्र में गुलूबंद को रामनवमी भी कहा जाता है।
5. हाथ के आभूषण
धगुले : इसे धागुली या धामुल भी कहा जाता है। मैदानी क्षेत्रों में यह आभूषण खंडवा के नाम से प्रचलित हैं। धगुले को सोने या चाँदी में राँगा मिलाकर बनाया जाता हैं। चाँदी के धगुले का भार 100 से 500 ग्राम तक रखा जाता है।
पौंछी : इन्हें दोनों हाथों की कलाइयों पर पट्टी के रूप में पहना जाता है। इसका प्रत्येक दाना शंकु के आकार का होता है। ग्रामीण अंचलों में पौंछी का प्रचलन अभी भी है ।यह आभूषण 3 से लेकर 5 पंक्तियों की लड़ियों में बनाई जाती है इसमें लाल रंग के कपड़े का उपयोग आधार सामग्री के रूप में किया जाता है जिस पर शुद्ध सोने के मोती जुड़े होते है इनको बनाने के लिए लाल रंग का प्रयोग इसलिए किया जाता है क्युकी इसे विवाहित महिलाओ के लिए बेहद शुभ माना जाता हैं। पौंची उत्तराखंड के गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र में ज़्यादा प्रचलित है इसे ज़्यादातर तीज त्योहारों में विवाहितो द्वारा ही पहना जाता हैं।
अंगूठी या गुंठी : इसे मूनड़ी, मुंदरी या मुद्रिका भी कहा जाता है। अंगूठी सोने या चाँदी, स्टील या अष्टधातु अथवा किसी भी धातु की बनाई जाती है। स्त्रियों में यह भी सुहाग का प्रतीक है। पुरुषों में भी अंगूठी का बराबर का प्रचलन है। प्रायः इस पर विभिन्न प्रकार के नग और पत्थर जड़े होते हैं।
ठोक : कलाई से लेकर कोहनी तक पहने जाने वाले खोखले सिलिंडर के आकार के चांदी के आभूषण को ठोक कहा जाता है।
सोने की चूड़ी : विशुद्ध रूप से स्वर्ण निर्मित होती है। प्रत्येक का भार 10 से 30 ग्राम का मध्य होता है। प्रत्येक हाथ पर 4-6 चूड़ियाँ पहनी जाती हैं।
6.कमर में पहने जाने वाले आभूषण
कमर के आभूषण तगड़ी (तिगड़ी) : यह कमर में पहने जाने वाला एकमात्र आभूषण है, जिसे पेटी या करधनी भी कहा जाता है। तगड़ी, प्राय: चाँदी से बनाई जाती है, जिसका भार 300 से एक किलो तक होता है। इसमें, कमर को घेरते हुए आयताकार, चौकोर या गोलाकार के सिक्के होते हैं, जो 4-5 लड़ियों से परस्पर जुड़े रहते हैं। तगड़ी विशेष अवसरों पर ही पहनी जाती है।और इसे इसे संपन्नता का प्रतीक माना जाता है।
7.पैरों के आभूषण
पायल : इन्हें झाँवर भी कहा जाता है। यह हमेशा जोड़े में ही बनाए जाते हैं। इन्हें पिंडलियों पर पहना जाता है जिनके अंदर छोटे-छोटे चांदी के कंकड़ या बीज डाल दिए जाते हैं जिनसे छम-छम की मधुर ध्वनि उत्पन्न होती है।
पाजेब (जेवरी ) : इन्हें पैजबी भी कहा जाता है। पहले यह चौड़ी पट्टी के रूप में होती थी, जिस पर छोटे छोटे घुँघरू बँधे रहते थे।
बिछुवा : यह पैरों की अंगूठे से लगी ऊँगली में सुहागन स्त्रियों द्वारा पहने जाते हैं, जिनका भार 5 से 10 ग्राम रखा जाता है। आजकल अन्य उँगलियों में भी बिछुवे पहनने का प्रचलन हो गया है।
यह भी पढ़ें - बधाइयां ! पहाड़ की बेटी भारतीय वायु सेना में बनी पायलट, देश में रोशन किया उत्तराखण्ड का नाम