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सबसे बड़े और अनोखे 'चिपको आंदोलन' की आज है 48 वीं वर्षगांठ, पढ़ें

उत्तर नारी डेस्क

आज पर्यावरण की रक्षा के लिए सबसे बड़े और अनोखे 'चिपको आंदोलन' को 48 वर्ष पूर्ण हो गए है। आज के ही दिन 1974 में चमोली की रैणी गाँव की महिलाओं ने गौरा देवी जी के नेतृत्व में पेड़ों को बचाने के लिए अन्य महिलाओं के साथ ये आंदोलन प्रारंभ किया था इस आंदोलन में वनों की कटाई को रोकने के लिए गांव के पुरुष और महिलाओं ने पेड़ों से लिपटकर अपनी जान दांव पर लगा दी थी। चिपको आंदोलन आज भी विश्वभर को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करता है और सदियों तक प्रेरित करता रहेगा। 

बता दें, कि यह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन 1973 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात यह थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। इस आन्दोलन की शुरुवात 1970 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी।

चिपको आंदोलन के वर्षगांठ पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि आज पर्यावरण की रक्षा के लिए सबसे बड़े और अनोखे ‘चिपको आंदोलन’ की वर्षगांठ है।चमोली की महिलाओं ने गौरा देवी जी के नेतृत्व में पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी। ऐसी मातृशक्ति को कोटिशः नमन। 

तो वहीं, नए मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया में पोस्ट लिख कर कहा कि पर्यावरण संरक्षण और पेड़ों की कटाई को रोकने के उद्देश्य से वर्ष 1974 में आज ही के दिन रैणी गाँव की महिलाओं ने गौरा देवी जी के नेतृत्व में सबसे बड़े और अनोखे चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी। चिपको आंदोलन आज भी विश्वभर को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करता है और सदियों तक प्रेरित करता रहेगा। प्रकृति को बचाने के लिए ऐसी जीवटता दिखाने वाले आंदोलनकारियों को मेरा कोटि-कोटि नमन। चिपको आंदोलन आज भी विश्वभर को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करता है और अनंत काल तक प्रेरित करता रहेगा।


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