उत्तर नारी डेस्क
उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जनपद में स्थित भारत-तिब्बत के बीच गर्तांग गली अब पर्यटकों के लिए खोल दी गयी है। जो कि भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक रिश्तों का गवाह और दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार है। आपको बता दें जिला प्रशासन की ओर से लोक निर्माण विभाग गड़तांग गली की सीढ़ियों का पुनर्निर्माण कार्य 7 माह बाद पूरा किया गया है। इसी के साथ बुधवार को उत्तरकाशी के डीएम मयूर दीक्षित ने गंगोत्री नेशनल पार्क के उप निदेशक व जिला पर्यटन विकास अधिकारी को गर्तांग गली को पर्यटकों के लिए खोलने के निर्देश भी दिए है। साथ ही उन्होंने यहां आने वाले पर्यटकों से कोविड एसओपी का अनुपालन कराने एवं भैरवघाटी के पास चेकपोस्ट बनाकर क्षेत्र में आने वाले पर्यटकों का पंजीकरण भी अनिवार्य किया है। पर्यटकों और निर्मित ट्रैक की सुरक्षा को देखते हुए ट्रैक में आवागमन के लिए एक बार में अधिकतम 10 लोग आपस में एक मीटर की दूरी बनाकर चलेंगे। ट्रैक में झुंड बनाकर आवागमन, बैठना मना होगा।
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भारत-तिब्बत के बीच गर्तांग गली की खास बात
भैरव घाटी के समीप गड़तांग गली की ख़ास बात यह है कि इसे खड़ी चट्टानों को काटकर लकड़ी से निर्मित सीढ़ीदार ट्रैक के रूप में बनाया गया है। साथ ही गंगोत्री धाम से 11 किमी पूर्व भैरोघाटी से जाड़ गंगा के किनारे से होकर गर्तांग गली का रास्ता निकलता है। हाल ही में इस ट्रेक का जीर्णोद्धार कर 136 मीटर लंबे व 1.8 मीटर चौड़े लकड़ी का सीढ़ीनुमा 150 मीटर लंबा रास्ता तैयार किया गया है। इसे प्रचाीन समय में सीमान्त क्षेत्र में रहने वाले गांव जादूंग, नेलांग को हर्षिल क्षेत्र से पैदल मार्ग के माध्यम से जोड़ा गया था। इस मार्ग से स्थानीय लोग तिब्बत से व्यापार भी करते थे। सेना सीमा की निगरानी के लिए भी इस मार्ग का उपयोग करती थी।
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भारत चीन युद्ध के बाद नेलांग घाटी पर्यटकों के लिए बंद
बताते चलें कि भारत चीन युद्ध के बाद नेलांग घाटी को पर्यटकों के लिए हमेशा के लिए बंद कर दिया गया था। इस युद्ध के पहले नेलांग घाटी का जादुंग एक आबादी वाला गांव था। प्रचाीन समय में सीमान्त क्षेत्र में रहने वाले गांव जादूंग, नेलांग को हर्षिल क्षेत्र से पैदल मार्ग के माध्यम से जोड़ा गया था। ताकि इस मार्ग से स्थानीय लोग तिब्बत से व्यापार कर सके।
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