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उत्तराखण्ड : 2021 में इन खास शख्सियतों ने दुनिया को कहा अलविदा

उत्तर नारी डेस्क

साल 2021 अपने अंतिम दौर में चल रहा है। नये साल का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। ऐसे में 2021 की यादें और घटनाओं को भी लोग याद कर रहे हैं। साल 2021 भी 2020 की तरह बुरा दौर लेकर ही आया। एक तरह जहां कोरोना वायरस ने लाखों लोगों की जान ले ली, तो वहीं साल 2021 में उत्तराखण्ड के भी कई अहम  शख्सियतों ने इस दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कहा। 

प्रख्‍यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा

चिपको आंदोलन के प्रणेता और प्रख्‍यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म उत्तराखण्ड के टिहरी के पास एक गांव में 9 जनवरी 1927 को हुआ था। कोरोना काल की दूसरी लहर में 21 मई 2021 को उनका देहांत हो गया था। सुंदरलाल बहुगुणा ने अपने जीवन काल में कई आंदोलनों की अगुवाई की, फिर चाहे वो शुरुआत में छुआछूत का मुद्दा हो या फिर बाद में महिलाओं के हक में आवाज़ उठाना ही क्यों ना हो। आपको बता दें कि महात्मा गांधी सुंदरलाल बहुगुणा के प्रेरणास्रोत रहे है। जिनसे उन्होंने प्रेरणा लेकर हिमालय के बचाव के लिए काम शुरू किया था और जिंदगीभर इसके लिए आवाज़ भी उठाई। यही कारण है कि उन्हें हिमालय का रक्षक भी कहा जाता था। उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य पर्यावरण की सुरक्षा था। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें 1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार और 2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होंने उत्तराखण्ड में पानी मिट्टी जंगल और बयार के लिए कई लड़ाई लड़ी है। वहीं, उन्होंने 1971 में चिपको आंदोलन के दौरान 16 दिन तक अनशन किया। जिसके चलते वह विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। पर्यावरण बचाओ के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में पुरस्कार से सम्मानित किया था।

CDS बिपिन रावत

8 दिसंबर, 2021 की सुबह जनरल रावत और उनकी पत्नी समेत सेना के 14 लोगों को लेकर जा रहा भारतीय वायु सेना का एमआई-17वी5 (Mi-17V5) हेलिकॉप्टर तमिलनाडु के कुन्नूर में क्रैश हो गया। जिसमें चीफ़ डिफेंस ऑफ स्टाफ़ (CDS) जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत समेत 13 लोगों की मौत हो गई थी। बता दें कि जनरल बिपिन रावत का जन्म 16 मार्च 1958 को उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल जिले में एक क्षत्र‍िय परिवार में हुआ। जनरल बिपिन रावत का पैतृक गांव सैंणा, पौड़ी गढ़वाल के द्वारीखाल ब्लॉक में पड़ता है। उनका परिवार चौहान राजपूत परिवार और उनकी मां परमार क्षत्र‍िय वंश से थीं। पिता एलएस रावत सेना से लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर थे। CDS रावत की प्रारंभिक पढ़ाई देहरादून में हुई थी जिसके बाद वह शिमला चले गए थे। सीडीएस रावत ने खड़गवासला स्थित एनडीए ज्वाइन कर लिया था। भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) से पासआउट होने के बाद सीडीएम रावत 16 दिसंबर 1978 को गोरखा रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त कर ऑफिसर बने थे। आईएमए देहरादून में ‘स्वॉर्ड आफ आनर’ से सम्मानित किए जा चुके हैं।

साल 2011 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से सैन्य मिडिया अध्ययन में पीएचडी की और 01 सितंबर 2016 को रावत ने सेना के उप-प्रमुख के पद की जिम्‍मेदारी संभाली थी। अपने चार दशकों की सेवा के दौरान जनरल रावत ने एक ब्रिगेड कमांडर, जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी-सी) दक्षिणी कमान, सैन्य संचालन निदेशालय में जनरल स्टाफ ऑफिसर ग्रेड 2, कर्नल सैन्य सचिव और उप सैन्य सचिव के रूप में कार्य किया है। वह संयुक्त राष्ट्र शांति सेना का भी हिस्सा रहे हैं और उन्होंने कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में एक बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड की कमान संभाली थी। गोरखा ब्रिगेड से सीओएएस बनने वाले चौथे अधिकारी बनने से पहले बिपिन रावत थल सेनाध्यक्ष बने थे।

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नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश

उत्तराखण्ड कांग्रेस की दिग्गज राजनेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश का 13 जून को निधन हो गया था। उन्होंने दिल्ली के उत्तराखण्ड सदन में अंतिम सांसें ली। डॉ. हृदयेश का निधन हार्ट अटैक की वजह से हुआ था। दिल्ली में होने वाली कांग्रेस की बैठक में भाग लेने के लिए वह राजधानी पहुंची थीं। इंदिरा हृदयेश ने राजनीति में अपना एक अलग मुकाम खड़ा किया था। 80 साल की उम्र में उन्होंने पांच दशक से ज्यादा समय सक्रिय राजनीति को दिया। उन्हें सिर्फ उनकी सियासी पहचान अपनी बात साफगोई से कहने वाली नेता की रही। कांग्रेस हो या विपक्ष के लोग इसलिए उनका बेहद सम्मान करते हुए उन्हें दीदी बुलाते थे। वह उत्तराखण्ड की राजनीति में आयरन लेडी के नाम से प्रसिद्ध थीं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत उत्तर प्रदेश से की और नेता प्रतिपक्ष के रूप में समाप्त की। 7 अप्रैल 1941 को अयोध्या, उत्तर प्रदेश में जन्मी डा. इंदिरा हृदयेश पेशे से शिक्षिका थीं। राजनीति में कदम रखने से पहले लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए और पीएचडी की उपाधि ली। इसके बाद हल्द्वानी स्थित ललित आर्य महिला इंटर कॉलेज में शिक्षिका बनीं। साल 1974 में सयुंक्त प्रांत में इंदिरा पहली बार उप्र विधान परिषद की सदस्य निर्वाचित हुईं। वर्ष 1986, 1992,1998 में उप्र विधान परिषद की सदस्य निर्वाचित हुईं। साथ ही वर्ष 2002, 2012 व 2017 के आम चुनावों में उत्तराखण्ड के विधान सभा की सदस्या निर्वाचित हुईं।

भाजपा विधायक हरबंस कपूर

उत्तराखण्ड के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, कैबिनेट मंत्री हरबंस कपूर का 13 दिसंबर को निधन हो गया है। हरबंस कपूर 75 साल के थे और देहरादून के कैंट विधानसभा से बीजेपी विधायक थे। हरबंस कपूर उत्तराखण्ड के सबसे सीनियर विधायकों में थे और उनके नाम लगातार एक क्षेत्र से 8 बार विधायक रहने का अनूठा रिकॉर्ड भी दर्ज़ है। इससे जनता के बीच उनकी पकड़ का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। हरबंस कपूर ने अपना पूरा जीवन आम जनता की सेवा में समर्पित किया। बता दें कक साल 2007 में दूसरे विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड में बीजेपी की पहली निर्वाचित सरकार बनी तो हरबंस विधानसभा अध्यक्ष चुने गए। उन्हें 1985 में पहली बार विधानसभा चुनाव में हार मिली थी, लेकिन इसके बाद से वे कभी विधानसभा चुनाव नहीं हारे और लगातार आठ बार विधायक की सीट पर काबिज रहे।

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