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यहाँ माता की मूर्ति दिन में तीन बार बदलती है अपना रूप, जानें इस रहस्य के बारे में

तान्या रावत  

प्राकृतिक खूबसूरती के साथ-साथ उत्तराखण्ड दुनियाभर में अध्यात्म और आस्था के लिए जाना जाता है। यहां कई ऐसे धार्मिक स्थान हैं जो पौराणिक काल से मौजूद हैं। प्राचीन ऋषि मुनियों की परंपरा को थामे उत्तराखण्ड यूं ही नहीं देवभूमि कहलाता है। यहां हर साल कई सैलानी शांत वातावरण की तलाश में आते हैं। यूं तो उत्तराखण्ड में अनगिनत प्रसिद्ध मंदिर मौजूद हैं लेकिन आज हम आपको यहां के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां की देवी को पहाड़ों की जीवनदाता एवं भाग्यविधाता माना जाता है।


धारी देवी मंदिर 

वैसे तो उत्तराखण्ड में कई चमत्कारी मंदिर हैं लेकिन जिस मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं वो सालों से उत्तराखण्ड राज्य की रक्षा कर रही हैं। ये मंदिर है मां धारी देवी का। पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। देवी काली को समर्पित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां मौजूद मां धारी उत्तराखण्ड के चारधाम की रक्षा करती हैं। मंदिर में मां धारी की पूजा-अर्चना धारी गांव के पंडितों द्वारा किया जाता है। माता के प्रकोप से बचने के लिए मंदिर में पूजा-पाठ पूरे विधि विधान से की जाती है, हालांकि ऐसा कभी नहीं हुआ कि माता ने यहां के लोगों को दंडित किया हो लेकिन फिर भी लोग यहां के हर नियम का पालन करते हैं। यहां हर दिन एक चमत्कार होता है, जिसे देखकर लोग हैरान हो जाते हैं। दरअसल, इस मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है, फिर दोपहर में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है। यह नजारा वाकई हैरान कर देने वाला होता है। 




3 बार रूप बदलती है मूर्ति 

मान्यता है कि धारी देवी मंदिर में देवी की मूर्ति एक दिन 3 बार अपना रुप बदलती है। सुबह कन्या का रूप जिसमें बच्ची जैसी चंचल होने की झलक और इसको बाल रूप भी कहते है, दोपहर में युवा महिला जैसा शालीन रूप और शाम रात्रि में वृद्धा प्रौढ़ का रूप देवी की मूर्ति मे देखा जाता है और उसी प्रकार से तीनो समय के अनुसार देवी की भक्ति और श्रृंगार किया जाता है।कई श्रद्धालुओं की ओर से प्रतिमा में होने वाले परिवर्तन को साक्षात देखने का दावा भी किया जाता है। कहते हैं, जो श्रद्धालु मां धारी से सच्चे दिल से मनोकामना मांगते हैं, उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। पहले माता के मंदिर में मनोकामनाएं पूरी होने पर जानवर की बलि दी जाती थी जिसे पहाड़ी भाषा में जात्रा कहते है, धीरे धीरे यह बलि प्रथा अब पूरे पहाड़ में ख़त्म हो चुकी है, अब किसी भी श्रद्धालु की मनोकामनाएं पूरी होती है तो माता के मंदिर में वह घण्टी चढ़ाते हैं। पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है। 


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धारी देवी की कहानी

ऐसा कहा जाता है की धारी के साथ भाई थे और वह उन 7 भाइयों की इकलौती बहन थी। वह अपने भाइयों से बहुत प्यार करती थी और उनके लिए स्वादिष्ट पकवान बनाया करती थी। माता-पिता के गुजर जाने के बाद वह अपने भाइयों के साथ ही पली बढ़ी थी और उनसे बहुत प्यार करती थी, जबकि रंग सावला होने के कारण भाई उससे जन्म से ही नफरत करते थे और उनसे ऐसा भी कहा गया था कि उस बच्ची के ग्रह अपने भाइयों के लिए अच्छे नहीं थे इस वजह से सब भाई उस से और ज़्यादा नफरत करने लगे, लेकिन वह अपने भाइयों को ही अपना सब कुछ मानती थी और उनसे बहुत प्यार करती थी। फिर अचानक उनके 7 भाइयो में से 5 भाइयो की मृत्यु हो गई। जिनकी शादी भी हो गयी थी। 5 भाइयो की मृत्यु होने के कारण जो 2 भाई जीवित थे उनको ये लगा की अगर वो बच्ची ज़िंदा रही तो वो दोनों भी मर जायेंगे क्योंकि उनको बचपन से यही बताया गया है की ग्रह तेज़ होने के कारण उनकी बहन ही उनकी मृत्यु का कारण बनेगी और वो सोचते थे की उसी की वजह से उनकी 5 भाइयो की मृत्यु भी हुई है और उनकी भी हो जायगी। उन्होंने अपनी बीवियों के साथ विचार विमश किया और उनकी बीवियों ने सुझाव दिए की अपनी बहन को मार डालो और उन्होंने ऐसा ही किया। जब वो 12 साल की बच्ची सो रही थी तो उन दोनों ने मिलके उस बच्ची को दो हिस्सों मे काट डाला और गंगा नदी मे फेंक दिया।

गंगा नदी में फेंकने के बाद बहते-बहते वह सिर कालीसुर के एक नदी मे पहुंच गया। सुबह का समय होने के कारण वहाँ एक आदमी कपड़े धो रहा था, तभी उसने आवाज़ सुनी "बचाओ बचाओ" उसने सोचा की गंगा नदी में  शायद कोई बच्ची डूब रह है। बहाव तेज़ होने के कारण उसने सोचा को "मैं उस बच्ची को बचाऊ की नहीं"। आदमी सोचता रहा तभी वहाँ से आवाज़ आई कि "घबराओ मत मुझे बचाओ, तुम जहां-जहां पैर रखोगे वहा सीढ़ी बना दूंगी और गंगा नदी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी" और ऐसा ही हुआ जहां-जहां उस व्यक्ति ने कदम रखा वहा वहा माँ ने सीढ़ीयाँ बना दी। सीढ़ीयाँ बनने के बाद जब आदमी ने उनको बचाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, वो आदमी उस कटे सिर को देखा तो वो चौंक गया, तभी देवी के कटे सिर ने कहा घबराओ मत मुझे यहाँ रख दो और फिर उस व्यक्ति ने उस कटे सिर को पत्थर पे रख दिया और फ़िर उस कटे सिर ने उस व्यक्ति को अपनी पूरी कहानी सुनाई की वो कौन है, कहाँ से आई है। जब उस आदमी ने कटे सर को उस पत्थर पे रखा और देखते ही देखते उस कटे सिर ने पत्थर का रूप ले लिया और फिर उस पत्थर की पूजा होने लगी और इस प्रकार धारी देवी मंदिर की स्थापना हुई। 


जाने का सबसे अच्छा समय

नवंबर से जून तक बहुत अनुकूल और शांत वातावरण का गवाह है और किसी भी त्यौहारों के मौसम के दौरान इस तीर्थ यात्रा पर जाना एक महान विचार है क्योंकि यह स्थान सबसे रमणीय दिखता है। धारी देवी मंदिर में मनाए जाने वाले कई त्योहार हैं, उनमें से दुर्गा पूजा व नवरात्री में विशेष पूजा मंदिर में आयोजित की जाती है, यह त्यौहार धारी देवी मंदिर के महत्वपूर्ण त्योहार हैं। मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्री में हजारों श्रद्धालु अपनी मनौतियों के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं। मंदिर में सबसे ज्यादा नवविवाहित जोड़े अपनी मनोकामना के लिए मां का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। वहीं, आप लोग भी जब उत्तराखण्ड घूमने को जाए तो इस आलोकिंक और देविय शक्तियों की देवी धारी देवी जाना न भूले। जीवों की जीवनदाता और पहाड़ों की भाग्यविधाता है माँ धारी देवी।


माँ धारी देवी का क्रोध

कहते हैं कि 16 जून 2013 को जिस दिन उत्तराखण्ड में जल प्रलय आया था, उस दिन माँ धारी देवी को उनके मूल स्थान से हटाके उनको दूसरी जगह ले जाया गया था। जिस कारण माँ धारी देवी भगवती को क्रोध आया और इसी वजह से देवभूमि पानी में समा गई। श्रीनगर में चल रहे हाइडिल-पॉवर प्रोजेक्ट के लिए ऐसा करना पड़ा। प्रतिमा हटाने के कुछ घंटे बाद शाम 8 बजे केदारनाथ मंदिर के आसपास आयी आपदा ने मोत का तांडव रचा और सब कुछ तबाह हो गया केवल केदारनाथ मंदिर को छोड़कर। श्रद्धालुओं का मानना है कि मां धारी की प्रतिमा के विस्थापन की वजह से केदारनाथ का संतुलन बिगड़ गया था, जिस वजह से देवभूमि में प्रलय आई। बाद में उसी जगह पर फिर से मंदिर का निर्माण कराया गया। ऐसी ही एक घटना 1882 में भी हुई थी जब स्थानीय राजा द्वारा ऐसा ही प्रयास किया गया था। उस समय भी इस क्षेत्र में खतरनाक भूस्खलन हुआ था। 


धारी देवी मंदिर तक कैसे पहुचें :

यह मंदिर दिल्ली-राष्ट्रीय राष्ट्रीय राजमार्ग 55 पर श्रीनगर से 15 किमी दूर है।अलकनंदा नदी के किनारे पर मंदिर के पास तक 1 किमी-सीमेंट मार्ग जाता है।

फ्लाइट से : जॉली ग्रांट हवाई अड्डा श्रीनगर गढ़वाल क्षेत्र का निकटतम हवाई अड्डा है जो 124 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जॉली ग्रांट एयरपोर्ट दैनिक उड़ानों के साथ दिल्ली से जुड़ा हुआ है। यह से लोकल टैक्सी, बसें आदि उपलब्ध रहते हैं।

ट्रेन से : श्रीनगर के निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून हैं। देहरादून रेलवे स्टेशन यमुनोत्री से 149 किलोमीटर और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन श्रीनगर से 110 किलोमीटर पर स्थित है। यहाँ से टैक्सी और बसें माँ धारी देवी मंदिर के लिए उपलब्ध रहती हैं।

सड़क से : माँ धारी देवी मंदिर सीधे सड़कों से पौड़ी, हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून जुड़ा है। बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर स्थित है।


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