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उत्तराखण्ड : न्याय के रहस्यमयी देवता, जहां चिट्ठी लिखने से पूरी हो जाती है मनोकामना

उत्तर नारी डेस्क

देवभूमि उत्तराखण्ड दुनियाभर में मंदिरों और धर्मस्थानों के लिए अपनी एक विशेष पहचान बनाता है। क्यूंकि यहां कई ईष्ट देवी देवताओं का वास है। जिसकी वजह से उत्तराखण्ड को देवो की भूमि देवभूमि कहा जाता है। वहीं उत्तराखण्ड अपनी कुछ प्रमुख ऐतिहासिक प्रेम कथाओं को लेकर भी विदेशों तक में मशहूर है। इन सबमें एक देवता ऐसे भी है जो केवल ‌चिट्ठी में मुराद स्टांप पेपर पर लिखकर मंदिर में चढ़ाने से मुराद पूरी कर देते हैं। इतना ही नहीं मान्यता है कि ये देवता सच्चे प्यार करने वालों को भी मिलाते हैं। कहा जाता है कि प्रेमी जोड़े इस मंदिर में अपने प्यार के नाम की चिट्ठी स्टांप पेपर पर लिखकर चढ़ाते हैं ताकि उन्हें उनका प्यार मिल जाए और उनकी मुराद पूरी हो जाए। 

चलिए आपको बताते हैं उत्तराखण्ड के ऐसे चमत्कारिक मंदिरों में से एक मंदिर के बारे में जो कि है अल्मोड़ा जिले में स्थित है। जिसे चितई गोलू देवता या न्याय के देवता कहा जाता है। अल्मोड़ा, चंपावत और घोड़ाखाल में इनके पवित्र मंदिर स्थित है। जहां इन्हें गोलू देवता न्याय के देवता, श्री ग्वेल ज्यू बाला गोरिया, गौर भैरव, ग्वेल देवता के रूप में जाना जाता है। यहां मंदिर के दर्शन कर जब लोगों की मुराद पूरी हो जाती है तो वह मंदिर में घंटियां चढ़ाकर जाते हैं। इन मंदिरों में लगी अनगिनत घंटियां ही यह गवाही देती है कि वह इस मंदिर से खाली हाथ नहीं गए हैं। यही कारण है कि मंदिर में हर रोज सैकड़ों अर्जियां लगती हैं। लोग स्टांप पेपर पर अपनी शिकायत और अपनी समस्या लिखकर देते हैं। वहीं गोलू देवता की कहानी भी बेहद अनोखी है।

गोलू देवता न्याय के देवता की प्रचलित लोककथा :-

गोलू देवता या भगवान गोलू उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र की प्रसिद्ध पौराणिक देवता हैं। गढ़वाल मंडल के कुछ क्षेत्र में इन्हे ग्वेल देवता के रूप में जाना जाता है। मूल रूप से गोलू देवता को गौर भैरव (शिव ) के अवतार के रूप में माना जाता है। कहा जाता है कि वह कत्यूरी के राजा झाल राय और कलिद्रा की बहादुर संतान थे। ऐतिहासिक रूप से गोलू देवता का मूल स्थान चम्पावत में स्वीकार किया गया है। जनश्रुतियों के अनुसार, चम्पावत में कत्यूरी व बंशीराजा झालूराई का राज था। इनकी सात रानियां थी लेकिन वे नि:सन्तान थे। राजा ने भैरव पूजा का आयोजन किया। भगवान भैरव ने स्वप्न में कहा कि मैं तुम्हारे यहां रानी से जन्म लूंगा।

एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गए। उन्हें प्यास लगी। दूर एक तालाब देखकर राजा ने ज्यों ही पानी को छुआ उन्हें एक नारी स्वर सुनाई दिया, 'यह तालाब मेरा है। तुम बिना मेरी अनुमति के इसका जल नहीं पी सकते।' राजा ने उस नारी को अपना परिचय देते हुए कहा- मैं गढ़ी चम्पावत का राजा हूं। मैं आपका परिचय जानना चाहता हूं। तब उस नारी ने कहा- मैं पंच देव देवताओं की बहन कलिंगा हूं। रानी ने कहा मेँ कैसे मान लू आप चम्पावत के राजा है ,अगर आप राजा हैं – तो बलशाली भी होंगे ही , जरा उन दो लड़ते हुए भैंसों को छुडाओ तब मैं मानूंगी की आप गढी चम्पावत के राजा हैं। राजा ने जब उन भैंसों को लड़ते देखा तो कुछ समझ नही आया की आखिर इन्हे कैसे छुड़ाया जाय, राजा ने हार मान ली उसके बाद नारी ने स्वयं जाकर उन भैसों को छुड़ाया नारी के इस करतब पर राजा आश्चर्य चकित हो गए तभी वहाँ पंचदेव ने अपने दर्शन दिए और राजा ने उनसे कलिंगा का विवाह प्रस्ताव रखा , पंचदेव ने मिलकर कलिंगा का विवाह राजा के साथ कर दिया और राजा को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। कुछ समय बीतने के बाद राज की आठवीं रानी गर्भवती हुई। ये बात राजा की दूसरी रानियों को पसंद नही आई रानियों ने सोचा की यदि इसका पुत्र हो गया तो हमारा मान – सम्मान कम हो जायेगा और राजा भी हमसे अधिक प्रेम इससे ही करेगा। रानियों ने योजना बनाई, की उस रानी के पुत्र को जन्म लेते ही मार देंगे।

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गोलू देवता का चमत्कार : जब पुत्र का जन्म होने वाल था तो ,आठवीं रानी के आँखों पर पट्टी बाध दी गई और जैसे ही पुत्र का जन्म हुआ। तो सातों रानियों सिल बटटे को रानी कलिंगा को दिखाकर कहा कि तुमने उसे जन्म दिया है। जब रानी ने देखा की उसका पुत्र नही लोंड सिलट हुआ तो रानी बहुत दुखी हुई। वहीं सभी रानियों ने योजना बनाई, कि बालक को एक लोहे के संदूक में लिटाकर काली नदी में बहा दिया जाए। उन्होंने एक बक्से में बंद करके बच्चा नदी में फेंक दिया। वह संदूक गोरीघाट में जा पहुंचा। जहां गोरीघाट पर भाना नाम के मछुवारे के जाल में वह संदूक फंस गया। मछुवारा नि:संतान था, इसलिए उसने बालक को भगवान का प्रसाद मान कर पाल लिया।

एक दिन बालक ने अपने असली माँ-बाप को सपने में देखा। उसने सपने की बात की सच्चाई का पता लगाने का निश्चय किया। एक दिन उस बालक ने अपने पालक पिता से कहा कि मुझे एक घोड़ा चाहये। निर्धन मछुवारा कहां से घोड़ा ला पाता। उसने एक बढ़ई से कहकर अपने पुत्र का मन रखने के लिए काठ का घोड़ा बनवा दिया। बालक चमत्कारी था। उसने उस काठ के घोड़े में प्राण डाल दिये और फिर वह उस घोड़े में बैठकर दूर-दूर तक घूमने जाने लगा।

एक बार घूमते-घूमते वह राजा झालूराई की राजधारी धूमाकोट में पहुंचा। घोड़े को एक जलाशय के पास बांधकर सुस्ताने लगा। वह जलाशय रानियों का स्नानागार भी था। सातों रानियां आपस में बातचीत कर रही थीं और रानी कलिंगा के साथ किए गए अपने कुकृत्यों का बखान कर रहीं थी कि बालक को मारने में किसने कितना सहयोग दिया और कलिंगा को सिलबट्टा दिखाने तक का पूरा हाल एक दूसरे को बढ़ चढ़ कर सुना रही थी।

उनकी बात सुनकर, बालक को अपना सपना सच लगने लगा। वह अपने काठ के घोड़े को लेकर जलाशय के पास गया और रानियों से कहने लगा, 'पीछे हटिये- पीछे हटिये, मेरे घोड़े को पानी पीना है।' सातों रानियां उसकी बेवकूफी भरी बातों पर हंसने लगी और बोली, 'कैसे बेवकूफ हो। कहीं काठ का घोड़ा पानी भी पी सकता है।' बालक ने तुरन्त पूछा, 'क्या कोई स्त्री पत्थर (सिल-बट्टे) को जन्म दे सकती है?' सभी सातों रानियों डर गयी और राजमहल जा कर राजा से उस बालक की अभ्रदता की झूठी शिकायतें करने लगी। ये बात जब आठवीं रानी को पता चली तो रानी बालक से मिलने नदी पर गई। हर रोज की तरह वही हुआ बालक आया और अपने घोड़े को पानी पिलाने लग गया, सातों रानी ने भी वही कहा की काठ का घोड़ा भी पानी पीता है क्या ? बालक ने कहा क्या कभी औरत से भी लोड़ सिलट जन्म लेता है, ये बात कहते ही आठवीं रानी बोली तुम ऐसा क्यों कह रहे हो। बालक ने रानी को पुरी बात बताई की किस तरह मुझे मारने की कोशिश की गई , ये बात जब राजा को पता चली तो राजा ने सातों रानियों को बंदीगृह में डाल देने की आज्ञा दी। सातों रानियां रानी कलिंगा से अपने किए की क्षमा मांगने लगी और रोने गिड़गिड़ाने लगीं। तब उस बालक ने अपने पिता को समझाकर उन्हें माफ कर देने का अनुरोध किया। राजा ने उन्हें दासियों की भाँति जीवन-यापन करने के लिए छोड़ दिया। कहा जाता है कि यही बालक बड़ा होकर ग्वेल, गोलू बाला, गोरिया, तथा गौर भैरव नाम से प्रसिद्व हुआ है। उनका ग्वेल नाम भी इसलिए पड़ा क्यूंकि उन्होंने अपने राज्य में जनता की एक रक्षक के रूप में रक्षा की और एक न्याय प्रिय राजा बना और आज भी उन्हें यहां भगवान के रूप में पूजा जाता है। 

गोलू देवता मंदिर की खासियत :-

अन्य मंदिरों की तरह यह मनोकामना करने या मन्नत मांगने की तरीका बिल्कुल अनोखा है। यहां लोग बकायदा आवेदन पत्र लिखकर मन्नत मांगते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, लोग न्याय पाने के लोग आवेदन पत्र देते हैं। बहुत से लोग तो स्टाम्प पेपर पर लिखकर अपनी बात रखते हैं।

कुछ लोग किसी मामले में न्याय पाने के लिए गोलू भगवान के दरबार में लिखित अर्जी देते हैं। पंडित इस अर्जी को पढ़कर गोलू देवता को सुनाते हैं। इसके बाद इस आवेदन पत्र को लोग मंदिर परिसर में टांग देते हैं। मनोकामना पूरी होने पर लोग यहां घंटी चढ़ाने आते हैं। किसी प्रकार की गलती होने पर लोग यहां गोलू देवता से क्षमा याचना करने भी आते हैं।

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