शीतल बहुखण्डी
उत्तराखण्ड में पलायन सबसे बड़ी समस्या है। प्रदेश के पहाड़ी गांवों से पलायन होने के बाद हजारों गांव वीरान हो चुके हैं और यहां के घर खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं। बीते कई दशकों में बड़ी संख्या में पहाड़ों के लोग रोजी-रोजगार की तलाश में अपने मूल गांवों से निकलकर शहरों में बस चुके हैं। आज सैकड़ों गांव ऐसे हैं जो मानव-विहीन हो चुके हैं। प्रदेश सरकार भी पलायन कर चुके लोगों को वापस बुलाने के लिए लगातार कई स्कीम लॉन्च कर रही है। वहीं, इसी कड़ी में इस अभियान को मजबूती देता कौथिग फाउंडेशन भी समय-समय पर लोगों से आह्वान कर रहा है कि एक बार अपने खेत-खलिहानों को आबाद करने को लेकर भी अवश्य सोचें और अपने पहाड़ों का भी रुख करते रहें।
आपको बता दें कौथिग फाउंडेशन विगत 13 वर्षों से नवी मुंबई में कौथिग मेला करा रहा है, जो कि प्रवासियों के साथ ही देश-विदेश में रहने वाले उत्तराखण्डियों को उत्तराखण्ड की संस्कृति के प्रति नई उमंग पैदा कर सांस्कृतिक विरासत को संजोने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, साथ ही शहरों में रह रहे प्रवासी उत्तराखण्डियों को उनके जन्मस्थान व उनके पुरखों की कर्मस्थली रहे मूल गांवों से जोड़ने का प्रयास कर रहा है।
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इस संबंध में कौथिग फाउंडेशन के संयोजक केशर सिंह बिष्ट ने बताया कि यह कौथिग कराने का मूल उद्देश्य एक ऐसा प्लेटफॉर्म स्थापित करना था जिससे उत्तराखण्ड के सभी प्रवासी एक जुट हो सके और एक जुट करने का सबसे सशक्त माध्यम संगीत और खेल की विधा है। यही विचारधारा को लेकर 13 वर्षों पूर्व नवी मुंबई में कौथिग फाउंडेशन की शुरुआत हुई। उन्होंने कहा कि यह प्रयास हमारी एक कोशिश थी कि पहाड़ों से बाहर गये लोगों और प्रतिभाओं को हम उनकी जड़ों से जोड़ सकें। इसी का परिणाम यह है कि पिछले 13 वर्षों में मुंबई कौथिग ने देशभर के उत्तराखण्डवासियों में जर्बदस्त लोकप्रियता हासिल की है और इस आयोजन में भारी संख्या में महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड की शख्सियतों के अलावा देशभर के कौने-कौने से जनप्रतिनिधि, लोक कलाकार नवी मुंबई का रुख कर कौथिग का हिस्सा बनते हैं।
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कौथिग संस्कृति, कला और नृत्य, संगीत का संगम
कौथिग फाउंडेशन के संयोजक केशर सिंह बिष्ट बताते है कि इस आयोजन में संस्कृति, कला और नृत्य, संगीत का संगम है। जिसमें उत्तराखण्ड के तमाम लोक कलाकार, फिल्म कलाकार, गीतकार सहित बड़े नेता शामिल होने आते है और अपनी प्रस्तुति देते हैं। यह सांस्कृतिक महोत्सव कौथिग का मंच हमारी उत्तराखण्ड की संस्कृति और लोक गाथाओं को जीवंत रखने का और अपने उत्तराखण्डियों को संस्कृतिक विचारधारा से जोड़ने का एक माध्यम है ताकि समाजिक एवं सांस्कृतिक पटल पर प्रवासी उत्तराखण्डी बड़े-बड़े शहरों में रहने के बावजूद भी खुद के अपने एक वजूद के साथ खड़ा हो।
वहीं, इस अभियान को और मजबूती देने लिए केशर सिंह बिष्ट हाल ही में उत्तराखण्ड दौरे पर आये थे। जहां उन्होंने राजधानी देहरादून में ‘प्रवासी मीट’ का आयोजन किया था। जिसके तहत वह कई ऐसे लोगों से मिले जो कि बाहर देशों से उत्तराखण्ड की और रुख कर कुछ बेहतर करने के प्रयास में लगे हैं। केशर सिंह बिष्ट कहते हैं कि ‘प्रवासी मीट’ के आयोजन को करने का उनका मुख्य उद्देश्य मुंबई और उत्तराखण्ड के लोगों के बीच एक संवाद कायम करना था ताकि संवाद की एक कड़ी खुल सके।
बताते चलें कि कौथिक फाउंडेशन मुंबई में उत्तराखण्ड के प्रवासियों का बना एक संगठन है जो कौथिक फाउंडेशन के बैनर तले साल भर कई कल्चरर प्रोग्राम कराता है। जिनमें स्पोर्ट्स एक्टिविटी, एजुकेशनल एक्टिविटी, उत्तराखण्ड प्रीमियर लीग, अल्ट्रा मैराथन(उत्तराखण्ड रन), इत्यादि गतिविधियां शामिल है।
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