तान्या रावत
यहां है राहू का प्राचीन मंदिर
उत्तर भारत में हिमालय की गोद में बसे उत्तराखण्ड के पौड़ी में स्थित थलीसैण ब्लॉक के एक गांव पैठाणी का धार्मिक महत्व संभवतया देश के और धार्मिक स्थानों से थोड़ा भिन्न है, क्योंकि यहां उन्हें भी आदर दिया जाता है जिन्हें स्वयं देवता भी ठुकरा देते हैं। तभी तो यहां देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से जिस दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया था, उसकी मंदिर बनाकर यहां पूजा की जाती है। गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार से लगभग 150 किमी और जिला मुख्यालय पौड़ी से महज 46 किमी दूर थलीसैण ब्लॉक की कंडारस्यूं पट्टी के पैठाणी गांव में स्योलीगाड (रथ वाहिनी) व नावालिका (पश्चिमी नयार) नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर ऐसा ही है। यह सुनने में भले थोड़ा अजीब जरूर है, लेकिन कहते हैं कि जनआस्था और विश्वास में कुछ भी नामुमकिन नहीं है। यही कारण है कि जहां राहु की दृष्टि पड़ने से भी लोग बचते हैं वहीं पैठाणी के इस राहु मंदिर में सदियों से राहु की पूजा होती आ रही है। वह भी भगवान शिव के साथ। गैरतलब है कि मंदिर के गर्भगृह में स्थापित प्राचीन शिवलिंग और मंदिर की शुकनासिका पर भगवान शिव के तीनों मुखों का अंकन इसके शिव मंदिर होने की ओर इशारा करते हैं। केदारखंड के कर्मकांड भाग में वर्णित श्लोक 'ॐ भूर्भुव: स्व: राठेनापुरादेभव पैठीनसि गोत्र राहो इहागच्छेदनिष्ठ' के अनुसार कई विद्वान इसके राहु मंदिर होने का प्रबल साक्ष्य मानते हैं।
पौराणिक कथन
स्थानीय के अनुसार आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। कहते हैं कि जब शंकराचार्य दक्षिण से हिमालय की यात्रा पर आए तो उन्हें पौड़ी के पैठाणी गांव के इस क्षेत्र में राहु के प्रभाव का आभास हुआ। इसके बाद उन्होंने पैठाणी में राहु के मंदिर का निर्माण शुरू किया।वहीं, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया हैं। उत्तराखण्ड गढ़वाल मंडल के पर्वतीय अंचल में स्थित यह मंदिर बेहद भव्य, अद्भुत एवं खूबसूरत है, जिसके दीदार को देश-दुनिया से पर्यटक एवं श्रद्धालु पैठाणी गांव पहुंचते हैं।
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सुदर्शन से कटने के बाद यहीं पर गिरा था राहु का सिर
राहु महामात्य के बारे में तो आपने सुना ही होगा। जिसमें सागर मंथन के दौरान स्वरभानु नामक राक्षस भगवान विष्णु स्वरूप की चाल को समझ गया था। इस पर स्वरभानु ने मंथन से निकले अमृत को देवताओं की पंगत पर बैठकर छका था। हालांकि इस दौरान भगवान विष्णु के मोहनी स्वरूप ने स्वरभानु को देख लिया था और वह भगवान विष्णु के कोप का भाजन बना। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया था, जिससे कि वह अमर न हो जाए, लेकिन अमृत छक चुका स्वरभानु तो अमर हो गया था। जिसका निचला हिस्सा केतु बना तो धड़ से ऊपर सिर वाला हिस्सा राहु कहलाया। कहते हैं राहु का सिर सुदर्शन से कटने के बाद देवभूमि उत्तराखण्ड के पैठाणी नामक गांव पर गिरा। जहां सिर गिरा उसी स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ राहु की धड़विहीन मूर्ति स्थापित है। मंदिर की दीवारों के पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी की गई है, जिनमें राहु के कटे हुए सिर व सुदर्शन चक्र उत्कीर्ण हैं। इसी वजह से इसे राहु मंदिर नाम दिया गया। कहा जाता है कि यहां पर विधि से पूजा करने पर राहु और केतु के साथ शनि के दोष से भी मुक्ति मिलती है। वहीं, धार्मिक आस्था के अनुसार राहु द्वारा स्थापित शिवलिंग पर जलाभिषेक कर लिंग की पूजा करने से राहु प्रसन्न हो जाते है। राहु की खूबी है कि अगर उनकी सकारात्मक दृष्टि किसी पर बन जाये तो वो फर्श से अर्श तक पहुंच सकता है।
मंदिर की मान्यता
मान्यता है कि आदिकाल में राहु ने अपने कष्टों से मुक्ति के लिए स्वयं इस स्थान पर शिव लिंग स्थापित कर शिव भगवान की तपस्या की थी। फलस्वरुप भगवान भोले प्रसन्न हुए थे। माना जाता है कि आज भी राहु इस मंदिर में भगवान शिव का तप कर रहे हैं। अगर आप भी राहु-केतु या शनि दोष से पीड़ित हैं तो पैठाणी स्थित राहु ईश्वर मंदिर में आकर अपना दोष दूर कर सकते हैं।
राहु मंदिर सरंचना
आठवीं-नवीं सदी के बीच का प्रतीत होता है राहु मंदिर। वास्तु शिल्प एवं प्रतिमाओं की शैली के आधार पर पैठाणी गांव का यह शिव मंदिर और प्रतिमाएं आठवीं-नवीं सदी के बीच के बने हुई प्रतीत होते हैं। इस मंदिर की पौराणिकता के साथ आजतक कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है। मंदिर की ऊपरी शिखा झुकी हुई प्रतीत होती है, यह मंदिर आज भी भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।
पश्चिमाभिमुखी है पैठाणी गांव का राहु मंदिर, पत्थरों से बने एक ऊँचे चबूतरे पर मुख्य मंदिर का निर्माण किया गया है। इसके चारों कोनों पर एक-एक कर्ण प्रासाद बनाए गए हैं। पश्चिम की ओर मुख वाले मुख्य मंदिर की तलछंद योजना में वर्गाकार गर्भगृह के सामने कपिली या अंतराल की ओर मंडप का निर्माण किया गया है। कला पट्टी वेदीबंद के कर्णों पर ही गोल गढ़ी गई है और उत्तर-पूर्वी व दक्षिण कर्ण प्रासादों की चंद्रालाओं के मध्य पत्थरों पर नक्काशी की गई है मंदिर के बाहर व भीतर गणेश, चतुर्भुजी चामुंड आदि देवी-देवताओं की प्राचीन पाषाण प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।
महेश्वर महाबहार जैसी है त्रिमुखी हरिहर की दुर्लभ प्रतिमा, पौड़ी के पैठाणी गांव में राहु मंदिर के शिखर शीर्ष पर विशाल आमलसारिका स्थापित है। अंतराल के शीर्ष पर निर्मित शुकनासिका के अग्रभाग पर त्रिमूर्ति का अंकन और शीर्ष में अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक गज व सिंह की मूर्ति स्थापित की गई है। मुख्य मंदिर के चारों कोनों पर स्थित मंदिरों का शिखर क्षितिज पट्टियों से सज्जित पीढ़ा शैली में निर्मित है। शिवालय के मंडप में वीणाधर शिव की आकर्षक प्रतिमा के साथ त्रिमुखी हरिहर की एक दूर्लभ प्रतिमा भी स्थापित है। प्रतिमा के मध्य में हरिहर का समन्वित मुख सौम्य है, जबकि दांये ओर अघोर और बायीं ओर वराह का मुख अंकन किया गया है। इस प्रतिमा ‘की पहचान पुरातत्वविद महेश्वर महावराह की प्रतिमा से करते है। अपने आश्चर्य जनक ही नहीं, अपितु यह संपूर्ण भारत की दुर्लभ प्रतिमाओं में से एक है।