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माँ ने दूध बेचकर पढ़ाया अपने बेटे को, अब बेटा बन गया नौसेना में ऑफिसर

उत्तर नारी डेस्क

उत्तराखण्ड के होनहार युवाओं का भारतीय सेना में जाना बचपन से देखा एक सपना होता है। भारतीय सेना में शामिल होने के सपने को साकार करने के लिए कई युवा जी तोड़ मेहनत कर सेना में जगह बनाते है और राज्य का नाम गौरवान्वित करते हैं। अब इसी क्रम में पहाड़ के मनोज ने उत्तराखण्ड का नाम रोशन किया है। आपको बता दें मूल निवासी कार्की व हाल कुशौली पिथौरागढ़ निवासी मनोज भट्ट एक अप्रैल को भारतीय नौसेना में सब लेफ्टिनेंट बन गए है। जिसके बाद से उनके परिवार में खुशी का माहौल हैं।

आज भारतीय नौसेना में सब लेफ्टिनेंट के पद पर चयनित मनोज की कहानी संघर्षों से भरी स्याही से लिखी हुई कहानी है। ख़ुद पिथौरागढ़ के मनोज भट्ट ने यह दास्तां बयां की है। मनोज भट्ट ने बताया कि उनके पिताजी स्व. कृष्णानंद भट्ट भारतीय सेना में हवालदार पद पर सेवारत थे। सेवाकाल में ही उनका आकस्मिक निधन हो गया था। तब मनोज मात्र 8 वर्ष के थे। इसके उनकी माता स्व माधवी देवी ने दो बहनों के संग इनका लालन-पालन ने गाय का दूध बेचकर किया। छोटी अवस्था से ही मनोज पढ़ाई के साथ-साथ घर के पास ही फौजी ऑफीसरों के क्वाटरों में दूध पहुँचाने का काम करते थे। विषम परिस्थितियों के दौरान भी मन में देश सेवा का जज्बा मनोज के अंदर कूट कूटकर भरा था। जिस वजह से मनोज ने घर -घर जाकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। पिता की मौत के बाद उन्होंने ठान लिया था कि वह अफसर बनेंगे। मां का सपना भी यही था।

मनोज ने पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दिया। साल 2007 में बीएससी प्रथम वर्ष के दौरान पिथौरागढ़ के मनोज भट्ट का भारतीय नौसेना में चयन हो गया। ये मनोज की मेहनत ही थी, जिसकी वजह से उन्हें पदोन्नति का फल मिलता चला गया। साल 2020 में मास्टर चीफ (भारतीय सेना के सुबेदार) बनने के साथ ही मनोज विशेष ट्रेनिंग लेकर गोताखोर दस्ते के भी मेंबर बन गए। अब मनोज नौसेना में सब लेफ्टिनेंट बन गए हैं। इसके बाद मनोज ने दोनों बहनों की शादी की। वर्ष 2018 में मां की भी मौत हो गई। मनोज भट्ट के ससुर कांति बल्लभ पाठक नौसेना से रिटायर्ड चीफ पेटी आफीसर और पत्नी सी सर्टिफिकेट होल्डर एनसीसी कैडेट रही हैं।

मनोज भट्ट ने अपनी सफलता के पीछे उनकी कड़ी मेहनत को बताया है। मनोज बताते हैं कि ड्यूटी के बाद रात को कमरे में थक हारकर आते थे। सभी साथी लाइट बंद कर सो जाते थे और वह दबे पांव उठकर स्टडी रूम में चले जाते थे। तीन से चार घंटे वह पढ़ाई करते थे। कई बार आधी रात को अधिकारियों ने उन्हें पढ़ते हुए देखा। और उन्हें आगे बढऩे के लिए गाइड किया। बीएससी से ग्रेजुएशन भी उन्होंने ड्यूटी के दौरान ही किया।

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