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देवभूमि उत्तराखण्ड में इस जगह पिया था महादेव ने विष का प्याला

उत्तर नारी डेस्क 

सनातन हिन्दू धर्म में सावन का महीना बेहद ही पावन माना गया है और इस महीने भगवान शिव की श्रद्धाभाव से अराधना की जाती है। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसे में शिवभक्त सावन के म​हीने में शिव मंदिर में जरुर जाते हैं। वहीं, सावन शुरू होते ही शिव भक्त कांवड़िए बम-बम भोले का उद्‌घोष करते हुए सड़कों पर दिखाई देने लगते हैं। गंगाजल से शिवजी का अभिषेक शिवजी की आराधना में सर्वोत्तम माना गया है। इस साल सावन का महीना 14 जुलाई से शुरू हो गया है और 12 अगस्त तक रहेगा। सावन में सोमवार के व्रत का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि सोमवार का व्रत करने से ​भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होते हैं और जातक को सुखमय जीवन का आशीर्वाद देते हैं। इस बार श्रावण मास में कई शुभ योग बन रहे हैं, जिससे सावन सोमवार में पूजा और व्रत का महत्व बढ़ गया है। सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई, दूसरा सोमवार 25 जुलाई, तीसरा सोमवार 01 अगस्त और चौथा सोमवार 08 अगस्त को होगा। ऐसे में हरिद्वार के पास ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव मंदिर का अपना खास पौराणिक महत्व भी है। आईये जानते है शिव के नीलकंठ मंदिर के बारे में.... 

यही से नीलकंठ बने महादेव

उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वतों के तल में बसा ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, हजारों साल पहले अमृत पाने की लालसा लिए देवताओं और असुरों के बीच समुद्रमंथन हुआ था। इस मंथन में अनेकों चीजें निकली। जिसे देवताओं और असुरों ने आपस में बांट लिया, लेकिन अमृत नहीं निकला। इसी बीच हलाहल विष उसमें से बाहर निकला। ऐसी मान्यता थी कि जब तक कोई विषपान नहीं कर देता, अमृत मंथन से बाहर नहीं आएगा। सभी देवता और असुर एक-दूसरे को ताकने लगे। कोई भी विष को पीने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। ऐसे में सृष्टि की रक्षा करने के लिए देवों के देव महादेव आगे आए और उन्होंने हलाहल विष ग्रहण कर देवताओं और असुरों के लिए अमृत पाने का रास्ता साफ किया। यह भी कहा जाता है कि जब महादेव ने विष ग्रहण किया था तो उसी समय उनकी पत्नी माँ पार्वती ने उनका गला दबाया, ताकि विष उनके पेट तक न पहुंच सके। इस तरह विष उनके गले में बना रहा। विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था। यहीं से भगवान शिव नीलकंठ महादेव कहलाये थे। जिस स्थान पर शिव ने विष पान किया, वहीं नीलकंठ महादेव का मंदिर स्थापित है।

भगवान शिव को समर्पित नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश से 32 किलोमीटर दूर मणिकूट पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर एकांत और जंगल के बीचों-बीच होने के कारण शिवभक्तों के लिए अतिप्रिय है। महाशिव रात्रि और सावन के महीने पर जलाभिषेक के अवसर पर बड़ी संख्या में शिवभक्त यहां आकर प्रभु का आशीर्वाद लेते हैं। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहां भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं। नीलकंठ महादेव मंदिर के शिखर पर बनी नक्काशी देखते ही बनती है। अत्यन्त मनोहारी मंदिर शिखर के तल पर समुद्र मंथन के दृश्य को चित्रित किया गया है और गर्भ गृह के प्रवेश-द्वार पर एक विशाल पेंटिंग में भगवान शिव को विष पीते हुए भी दिखलाया गया है। यह मंदिर वैसे तो ऋषिकेश शहर के निकट है, लेकिन पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक के अंतर्गत आता है। 



क्यों पड़ा गंगा की धारा का नाम नीलधारा
भगवन शिव ने विष को निष्प्रभावी बनाने के लिए कजरी वन की पर्वतमाला में गंगा स्नान किया। विष के प्रभाव से गंगा की धारा व कजरी वन की पर्वत शृंखला नीली पड़ गई और हरिद्वार में प्रवाहित हो रही गंगा की यह धारा नीलधारा के नाम से प्रसिद्ध हो गई। गंगा की है पवित्र पावन धारा आदि श्री दक्षिण काली पीठ चंडीघाट से होती हुई श्यामपुर कांगड़ी के क्षेत्र तक प्रवाहित होती है। 

भव्य मेला 
नीलकंठ महादेव मंदिर में सावन के महीने और हर महीने सोमवार, प्रदोष तथा महाशिवरात्रि के दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। नीलकंठ महादेव मंदिर के सामने पर्वतमाला पर शिव की पत्नी पार्वती शक्ति के रूप में विराजती हैं। इस तरह उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल स्थित मणिकूट पर्वतमाला पर शिव शक्ति की पूजा एक साथ की जाती है जो भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

बेल पत्ती समेत छह वस्तुएं हैं शिव को प्रिय
भक्त अपने आराध्य शिव को बेल पत्ती, नारियल, फूल, शहद, फल और गंगा जल चढावे के रुप में अर्पित करते हैं। फरवरी से मार्च माह के बीच महाशिव रात्रि और जुलाई से अगस्त माह के बीच सावन के महीने में यहां बड़ी संख्या में कांवडि़ये आकर शिव के दर्शन करते हैं।


कैसे पहुंचे नीलकंठ महादेव मंदिर 

लोगों की मान्यता है कि भगवान शिव इनकी मन्नतों को पूर कर देते हैं। यूं तो उत्तराखंड के कण-कण में भगवान शिव का वास है। नीलकंठ महादेव अपने सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरा कर देते हैं। यही कारण है यहां साल भर बड़ी संख्या श्रद्धालु देश कोने-कोने से अपने आराध्य नीलकंठ महादेव के दर्शनों लिए मणिकूट पर्वत पहुंचते हैं। ऋषिकेश से नीलकंठ तक वाहन या पैदल दोनों तरीकों से पहुंचा जा सकता है। वाहन से जाने के लिए तीन सड़क मार्ग हैं। बैराज या ब्रह्मपुरी के रास्ते जाने पर 35 किमी दूरी पड़ती है। सड़क का नजदीक रास्ता रामझूला टैक्सी स्टैंड से है। यह रास्ता 23 किमी का है। वहीं स्वर्गाश्रम रामझूला से पैदल रास्ता 11 किमी है। जबकि ऋषिकेश शहर से पैदल दूरी 15 किमी है। नीलकंठ महादेव मन्दिर जाने के लक्ष्मणझूला से टैक्सी मिलती है। निजी वाहन से भी यहां पहुंचा जा सकता है।

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