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कोटद्वार : चन्दन और आम्र के पेड़ों से घिरा जगदेव मंदिर, यहां होती है मनोकामना पूरी

शीतल बहुखण्डी

ऋग्वेद में उत्तराखण्ड को देवताओं का आवास या देवभूमी कहा गया है। जहां देवी-देवता निवास करते हैं। इस प्रदेश मे इतने देवियों तथा देवताओं के पूज्यनिय स्थल है कि मनुष्य द्वारा उनकी गणना करना असम्भव है। 

इसी क्रम में आज हम आपको उत्तराखण्ड कोटद्वार के मवाकोट में स्तिथ एक विख्यात एवं पुरातन मंदिर राजा जगतदेव (जगद्देव) पवार के प्राचीन मंदिर के बारे में बताएंगे। जो कण्वाश्रम से 3 कि0 मी0 की दूरी पर सड़क के किनारे स्तिथ है। ये सड़क आगे चल कर कोटद्वार डिग्री कालेज के पास से निकलती है। 

जगद्देव मंदिर सडक के किनारे एक छोटे से टीले पर स्तिथ मंदिर है। जो कि आज से 60 या 70 वर्ष पूर्व स्थापित हुआ है। मंदिर के आसपास चन्दन एवं आम्र  के वृक्ष है। जिनकी सुगन्धि दूर-दूर तक सुगन्धित होती है। 

मंदिर के बारे में पुराणों में बताया गया है कि यहाँ पर तपस्वी राजा श्री जगदेव राजा (बाबा) जी ने तपस्या कर इस जगह को पावन किया था। इस मन्दिर की विशिष्टता यह है कि दर्शन मात्र से ही भक्तों की समस्त मुराद शीघ्र ही पूर्ण हो जाती है। इसलिए दूर-दूर से भक्तों का तांता यहां प्रतिदिन लगा रहता है। 

यह मन्दिर कोटद्वार शहर से दूर एकान्त में मध्य हिमालय की पहाड़ियों में स्थित है, यहाँ की नैसर्गिक दिव्यता और सुंदरता भक्तों का मन मोह लेती है। मंदिर से पूर्व ही जगद्देव सरोवर पवित्र नदी (जगद्देव बाबा के तप स्वरूप प्रकट नदी) प्रवाहित होती है, नदी पार करने के पश्चात सर्व प्रथम भक्तों को विघ्नहर्ता गणेश जी के दर्शन होते हैं जो समस्त विघ्नों को नाश कर देते है एवं कुछ आगे जगद्देव परिसर में तप संलग्न पूर्व तपोनिष्ठ संतो की समाधि के दर्शन होते हैं, तत्पश्चात भक्त जगद्देव बाबा परिसर में प्रविष्ट होता है और श्री जगदेव बाबा के दर्शन करता है। 

जगद्देव बाबा के दर्शन के पश्चात आगे कुछ दूरी पर माता रानी का बड़ा ही प्यारा सा मंदिर है। 

इसके बाद पुनः आगे एक तपोनिष्ठ बाबा जी कि समाधी है। ये बाबा जी कुछ वर्ष पूर्व यहीं इसी मंदिर में रह कर तपस्या में लीन होकर समाधिष्ठ हुये थे। 

कुछ आगे चढाहि नुमा पहाडियों पर आपको दर्शन देंगे भगवान श्री हरि विष्णु जी, जो पीपल के वृक्ष के नीचे रहते हैं और भक्तों के मनोरथो को पूर्ण करते हैं। यात्रा आगे बढ़ती है और पहुँचती है अंत में भगवान शिव के चरणों में  जहाॅ आपको भगवन शिव, चन्दनेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन होंगे। 

वापस लौटने पर आपको बाबा जी कि छोटी सी कुटिया दिखेगी। जहाँ पर भक्तों को जगद्देव बाबा का आशीर्वाद रूपी प्रसाद मिलेगा।


जगद्देव मंदिर के बाबा कल्याण बताते है कि यह मंदिर बहुत पौराणिक है। इस समय यह मंदिर डेढ़ हेक्टयेर में फैला हुआ है। गॉव के सभी ग्रामीण यहां पूजा-अर्चना करने आते है और अपनी खेत की पहली नयी फसल और गाय के बछड़े के जन्म के बाद गाय का पहला शुद्ध दूध मंदिर में चढ़ाते है। तब अपने प्रयोग में लाते है। बाबा बताते है कि मंदिर में बाहर से भी कई पर्यटक घूमने आते है। मंदिर टीले पर स्तिथ होने के कारण यहां मौर भी देखने को मिलते है। 

कौन थे जगदेव परमार?

जगदेव, जिन्हें जगदेव या जगदेव परमार के नाम से भी जाना जाता है, मध्य भारत के परमार वंश के 11वीं-12वीं सदी के राजकुमार थे। उन्हें जैनद में मिले एक शिलालेख और कुछ लोक कथाओं से जाना जाता है। 

बताया गया है कि चक्रवर्ती सम्राट राजा भोज के भतीजे राजा जगदेव पंवार जो परमार/पंवार वंश के सबसे दानवीर और प्रतापी राजा थे उन्होंने पंवार वंश की कुलदेवी गढ़कालिका के सामने सात बार अपने राज्य और शीश दोनों को अर्पण किया और माता ने हर बार इस दानवीर राजा को बचा लिया। अंतत: माता ने राजा जगदेव को अपने चरणों में जगह दी। इसलिए कलियुग मे जगदेव से बड़ा दानी किसे भी नहीं माना गया है।


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