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उत्तराखण्ड के लोकपर्व हरेला का हुआ आगाज

उत्तर नारी डेस्क 

जी रया, जागी रया, 

यौ दिन यौ महेंण, कैं नित-नित भ्यटने रया 

दुब जस पगुर जया, 

धरती जस चाकव आकाश जस उच्च है जया 

स्यूं जस त्राण है जो, स्याव जसि बुद्धि है जौ 

हिमालय में ह्यू छन तक, गंगा में पाणी छन तक, 

हरेला त्यार मानते रया, जी रया, जागी रया

प्रकृति पूजन का प्रतीक हरेला लोकपर्व का आज 16 जुलाई यानी मंगलवार से आगाज हो रहा है। हरेला पर्व की पूर्व संध्या पर डेकर पूजन की परंपरा भी निभाई गई। शास्त्रों के अनुसार कुमाऊं में हरेला पर्व से ही श्रावण मास और वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है। हरेले के तिनकों को इष्ट देव को अर्पित कर धन-धान्य, दुधारू जानवरों की रक्षा और परिवार व प्राकृतिक की कुशलता की कामना की जाती है। 

बता दें, आज उत्तराखण्ड का लोकपर्व हरेला बड़े उत्सव के साथ मनाया जा रहा है। वहीं, श्रावण मास में मनाये जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता तथा समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। जिस कारण कुमाऊं अन्चल में यह त्यौहार अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जैसा कि आप सभी जानते है कि श्रावण मास भगवान भोलेशंकर का प्रिय मास है, इसलिए हरेले के इस पर्व को कई स्थानों में हर-काली के नाम से भी जाना जाता है। यह सर्वविदित ही है देवों की भूमि उत्तराखण्ड में ईश्वर स्वयं विराजमान है ऐसी हम सभी की अस्था है। यहां पर शिव के अनेक धाम है जैसे कि भोले की नगरी केदारनाथ धाम है, यहां पर जागेश्वर धाम शिव का पवित्र स्थान है जहां पर कहा जाता है कि शिव साक्षात शिवलिंग के रूप में विराजमान है इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला का अपना विशेष महत्व माना जाता है। हरेला पर्व मनाने के पीछे आत्मिक संतुष्टि भी हम कह सकते हैं क्योंकि माना जाता है कि अगर हरेला जितना बड़ा और घना होगा तो उसे घर में सुख संपदा में वृद्धि होती है और आने वाली फसल बहुत अच्छी होने का  अनुमान लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त हरेला पर्व मनाने के पीछे पर्यावरण संरक्षण का शुभ संदेश देना भी होता है। उत्तराखण्ड में परंपरा है हरेला पर्व के दिन अपने घरों में सभी लोग एक वृक्ष अवश्य लगाते हैं।

हरेला पर्व मनाने हेतु लोगों में पहले दिन से ही उत्सुकता होती है। प्रातः काल नित्य कर्म से निवृत्त होकर घर की सफाई इत्यादि के बाद बड़े ही हर्षोल्लास के साथ तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बने हुए सभी पकवानों को भोग अर्पित कर हरेले की पूजा के उपरांत हरेला काटा जाता है और भगवान के चरणों में अर्पित किया जाता है। स्थानीय सभी मंदिरों में हरेला बड़ी आस्था के साथ ईश्वर के चरणों में अर्पित किया जाता है। तदुपरांत घर के बड़े बूढ़े इन आशीष वचनों के साथ हरेला सभी सदस्यों के सिर और कान में लगाकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। 


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