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हरिद्वार : श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय एवं श्री सांई इन्स्टीट्यूट महाविद्यालय हरिद्वार के संयुक्त तत्त्वावधान में हुआ संस्कृत दिवस का आयोजन

उत्तर नारी डेस्क 

आज 20 अगस्त को श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय हरिद्वार व श्री सांई इन्स्टीट्यूट महाविद्यालय हरिद्वार के संयुक्त तत्त्वावधान में संस्कृत दिवस का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वालन कर किया गया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में संस्कृत सप्ताह का परिचय प्रदान करते हुए श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय हरिद्वार के व्याकरण विभाग के सहायकाचार्य डाॅ. दीपक कोठारी ने कहा कि संस्कृत भाषा में सन्निहित ज्ञान-विज्ञान को जनसामान्य तक पहुँचाने हेतु ही भारत सरकार के द्वारा सन् 1969 में श्रावण पूर्णिमा के दिन को संस्कृत दिवस के रूप में उद्घोषित किया गया। इस दिन की पवित्रता को देखते हुए ही इस दिन को संस्कृत दिवस के रूप में उद्घोषित किया गया है। क्योंकि इसी दिन रक्षाबन्धन एवं उपाकर्म जैसे पवित्र त्यौहारों को मनाया जाता है। उपाकर्म के अन्तर्गत इस देश की संस्कृति का मूल ऋषियों का पूजन भी किया जाता है।

कार्यक्रम को अध्यक्ष के रूप में सम्बोधित करते हुए जगद्देव संस्कृत महाविद्यालय हरिद्वार के पूर्व साहित्याचार्य श्रद्धेय आचार्य रामचन्द्र गोविन्द वैजापुरकर ने कहा कि संस्कृत सभी भाषा की जननी है, यदि हमें भाषाओं की मूल भाषा का ही ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ तो हम कैसे अपने देश की संस्कृति को समझ पायेंगे। उन्होनें यह भी कहा कि स्वतन्त्रता संग्राम के पुरोधा चन्द्रशेखर आजाद भी संस्कृत के ही छात्र थे एवं उनको अपने स्वाभिमान का ज्ञान संस्कृत साहित्य का अध्ययन करने के बाद ही हुआ था तभी उन्होंने अपने आपको आजाद कहना शुरु किया।

सभा को विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए संस्कृत भारती के प्रान्त संगठन मंत्री श्रीगौरव शास्त्री ने कहा कि संस्कृत एवं हिन्दी में ज्यादा अन्तर नहीं है अतः हम यदि हिन्दी का भी प्रयोग करते हैं तो हम कहीं न कहीं संस्कृत का ही प्रयोग करते हैं क्योंकि संस्कृत के बिना हिन्दी का अस्तित्व नहीं के बराबर है। यह भी संस्कृत भाषा की एक अपनी प्रमुख विशेषता है।

सभा को मुख्य वक्ता के रूप में सभा को सम्बोधित करते हुए श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय हरिद्वार के साहित्य विभागाध्यक्ष डाॅ. निरञ्जन मिश्र ने कहा कि आज हमको अपनी संस्कृति  को बचाने हेतु कार्य करने की अत्यन्त आवश्यकता है। संस्कृत सप्ताह में  केवल व्याख्यान देने से संस्कृति नहीं बचेगी अपितु इस क्षेत्र में हम सभी को गम्भीर रूप से कार्य करने होंगे। आज कल का  प्रायः प्रत्येक श्रोता अंग्रेजी भाषा में दिये गये व्याख्यान को तो आसानी से समझ लेता है किन्तु संस्कृत में दिये गये व्याख्यान को बहुत कम लोग ही समझ पाते हैं इसका मूल  हमारी संस्कृति पर किया गया आघात ही है। इस अवसर पर साॅई इन्स्टीट्यूट के योग विभागीय छात्रों के द्वारा  सूर्यनमस्कार एवं कम्प्यूटर विभागीय छात्रों के द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की गयी। कार्यक्रम में  संस्थान के योगविभागीय एवं कम्प्यूटर विभागीय प्राध्यापकों सहित समस्त छात्र उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सञ्चालन गीता बर्थ्वाल के द्वारा किया गया।

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