उत्तर नारी डेस्क
हारे का सहारा श्री श्याम हमारा....जी हां, जो लोग अपनी जिंदगी से परेशान हो चुके हैं और शांति ढूंढ रहें है, वो एक बार हारे के सहारे भगवान श्री खाटू जी के दर्शन करके जरूर देखें, उनको शांति, सुख एवं समृद्धि जरूर प्राप्त होगी। जो श्रद्धालू हारे के सहारे खाटू श्याम जी के भक्त है और राजस्थान दूर होने के कारण या वो समय न मिलने के कारण या किसी और अन्य कारणवश खाटू श्याम जी मंदिर के दर्शन नहीं कर पा रहे है, तो भक्तों अब आप राजधानी देहरादून के सेलाकुई स्थित बने श्री खाटू श्याम मंदिर में आसानी से आप लोग कर सकते हैं, हारे के सहारे के दर्शन वो भी एक दम आसानी से।
आइए जानते है कौन है खाटू श्याम और क्या है इनका इतिहास? खाटू श्याम मंदिर सेलाकुई देहरादून एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो भगवान श्री कृष्ण के अवतार खाटू श्याम को समर्पित है। यह मंदिर उत्तराखण्ड के देहरादून जिले में सेलाकुई में स्थित है। खाटू श्याम मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। महाभारत ग्रंथों को पढ़ा जाए तो पांडव पुत्र भीम और उनकी पत्नी नागकन्या मौरवी के पुत्र बर्बरीक से जुड़ी हुई है। बर्बरीक बचपन से ही बलशाली और शौर्यगुन से भरपूर थे। उन्हें युद्ध करने की कला भगवान् श्री कृष्ण और उनकी माता के द्वारा बचपन में ही प्राप्त हो गई थी। युवावस्था तक आते-आते उन्होंने भगवान् शिव जी को अपने तप से प्रसन्न करके तीन अद्भूत बाण प्राप्त कर लिए थे। शिव जी के द्वारा जो बाण उन्हें प्राप्त हुए थे, वो बर्बरीक को तीनों लोकों में विजय प्राप्त करने के लिए काफी थे।
जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो भगवान श्री कृष्ण इस बात को लेकर चिंतित थे कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुए तो यह युद्ध न्यायपूर्ण नही रह पाएगा। वे पांडवों को जल्दी ही जीत दिला देंगे। इसलिए भगवान् श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धरा और युद्ध में शामिल होने जा रहे बर्बरीक को रोकने के लिए उनकी परीक्षा लेनी शुरू कर दी। बर्बरीक ने अपनी योग्यता साबित करने के लिए एक बाण पीपल के पेड़ पर चलाया जिससे पीपल के सारे पत्तों में छेद हो गया। भगवान् श्री कृष्ण ने उनसे दान में बर्बरीक का सिर मांग लिया। बर्बरीक समझ गए कि यह कोई साधारण गरीब ब्राह्मण नही बल्कि भगवान् श्री कृष्ण है। फिर उन्होंने भगवान् से अपना वास्तविक परिचय मांगा और भगवान् के दर्शन होते ही उन्होंने ख़ुशी से भगवान् श्री कृष्ण को अपना शीश दान में दे दिया।
बर्बरीक ने अपना शीश फल्गुन शुक्ल पक्ष दशमी को अपने हाथों से स्नान, दान, पूजा पाठ करने के बाद दान कर दिया था। लेकिन शीश दान में देने से पहले बर्बरीक ने श्री कृष्ण से अपनी एक अंतिम इच्छा बताई की वह महाभारत का युद्ध अपने आँखों से देखना चाहते है। इसलिए भगवान् श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को ऊँची चोटी पर युद्ध देखने के लिए रख दिया था। जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो पांडव अपनी विजय का श्रेय लेने के लिए आपस में वाद-विवाद करने लगे, तभी भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि बर्बरीक युद्ध का निर्णय बतायेंगे। बर्बरीक के शीश ने बताया कि युद्ध के दौरान भगवान् श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र से लोगों को ढेर कर रहा था और द्रौपदी महाकाली रूप में रक्तपान कर रही थी। इस घटना के उपरांत भगवान श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक के कटे हुए सिर को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही मेरे सभी भक्तो का कल्याण हो जायेगा और उन्हें धर्म तथा मोक्ष कि प्राप्ति भी होगी।
देहरादून स्थित खाटू जी के मंदिर की वास्तुकला बहुत ही सुंदर और आकर्षक है। मंदिर में पूजा और दर्शन की व्यवस्था है, जहां श्रद्धालु आसानी से भगवान खाटू श्याम की पूजा कर सकते हैं। साथ ही मंदिर में विभिन्न त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं, जिनमें श्रद्धालु भाग ले सकते हैं। यदि आप भी खाटू श्याम मंदिर सेलाकुई देहरादून की यात्रा करना चाहते हैं, तो आप मंदिर तक पहुंचने के लिए देहरादून से सेलाकुई तक बस या टैक्सी ले सकते हैं। जो आपको आसानी से ISBT से उपलब्ध हो सकती है। मंदिर के पास कई होटल और धर्मशालाएं हैं, जहां आप आसानी से ठहर सकते हैं।