तान्या रावत

उत्तराखण्ड जिसका उपनाम देवभूमि भी है। उत्तराखण्ड को इस नाम से पुकारे जाने का कारण है इसकी भूमि पर स्थित अनेकानेक सिद्ध स्थान एंव अनगिनत शक्तिपीठ। जिस भूमि का कण-कण व पग-पग ईश्वरीय अनुभूति से भर दे वह स्थान ही कहलाता है देवभूमि। आज ऐसे ही दिव्य स्थान या यूँ कहें एक सिद्ध स्थान “दुर्गा देवी मंदिर” के बारे में हम आपसे कुछ जानकारी साझा करेगें। यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार से महज 13 किमी की दूरी पर खोह नदी के किनारे समुद्र की सतह से 600 मीटर की ऊंचाई पर मुख्यमार्ग पर स्थित है। हालांकि प्राचीन मंदिर थोड़ा नीचे 12 फिट लंबी गुफा में स्थित है, जिसमें एक शिवलिंग स्थापित है। यहां स्थित गुफा में दीर्घकाल से ही निरंतर धूनी जलती रहती है। कहा जाता है कि यहां माता रानी के दर्शन करने सिर्फ भक्त ही नहीं बल्कि उनकी सवारी शेर भी आता है और माथा टेककर चले जाता है। यहां रह रहे महात्माओं पर उसने कभी कुदृष्टि तक नहीं डाली। स्थानीय निवासी इस मन्दिर में बड़ी श्रद्धाभक्ति से देवी की पूजा करते हैं। उनका विश्वास है कि मां दुर्गा उनके जीवन में आने वाले हर संकट को हर लेती है। चैत्रीय व शारदीय नवरात्र में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है इस दौरान यहां कई श्रद्धालु भण्डारे का आयोजन करते हैं। श्रावणमास के सोमवार और शिवरात्रि को बड़ी संख्यां में शिवभक्त यहां भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने आते हैं। इस अवसर पर शिवभक्त देवी के दर्शन करना भी नहीं भूलते हैं।
दुर्गा देवी मंदिर की मंदिर मान्यताएँ
मां दुर्गा देवी का यह मंदिर पहाड़ियों के बीच स्थित है। जो मुख्य सड़क मार्ग पर ही है। चारों तरफ हरे-भरे जंगल और बड़े-बड़े ऊँचे पहाड़ इस मंदिर की सुदंरता को बढ़ाते हैं। तो वहीं मंदिर के नीचे बहती खो नदी की आवाज लोगों को काफी आकर्षित करती है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में माँ दुर्गा पहाड़ में प्रकट हुई थी। यहां बहुत दूर-दूर से लोग माँ दुर्गा देवी के दर्शन करने आते है। माँ दुर्गा देवी के मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां पर आया कोई भी श्रद्धालु खाली हाथ नहीं लौटता। मां दुर्गा देवी अपने सभी भक्तों की इच्छा को पूरा करती हैं। देवी के मंदिर में श्रद्धालु लाल चूनरी बांधकर माँ से मन्नत मांगते है और मन्नत पूरी होने पर फिर उस चूनरी को खोल देते है। इसलिए भक्तों की इस जगह से बहुत आस्था जुड़ी हुई है। वहीं, नवरात्र में इस मंदिर की रौनक और भी अधिक बढ़ जाती है। पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वहीं एनएच 534 से होकर गुजरने वाले यात्रियों का मस्तक मंदिर को देखकर श्रद्धा से झूक जाता है।
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मंदिर निर्माण की रोचक कथा
कहा जाता है कि मंदिर प्राचीन समय में बहुत छोटे आकार का हुआ करता था जो कि सड़क से ठीक नीचे स्थित है, जिसके कारण कोटद्वार के बीच सड़क कार्य निर्माण में विवदा आ रही थी तब माँ दुर्गा ठेकेदार के सपने में आई और कहा कि पहले मेरा मंदिर बनवाओ लेकिन ठेकेदार कोई खान था तो उन्होंने ऐसा करना जरूरी नही समझा लेकिन जब बहुत समय से सड़क निर्माण कार्य में रुकावट आती गई तो ठेकेदार द्वारा भव्य मंदिर की स्थापना की गई, तब जाकर सड़क कार्य सम्पन्न हुआ। इसलिए कहते है कि इस मंदिर के दर्शन करने बाद भक्तों का कोई भी रुका हुआ काम पूरा हो जाता है। यह मंदिर बहुत ही आकर्षक है इस मंदिर में दैविक चमत्कारों की अनुभूति होती है। जैसे माँ दुर्गा यही है। इस मंदिर के निकट छोटे मंदिर के किनारे पर दिव्य शांति मिलती है। यहाँ एक अलग ही अनुभूति का एहसास होता है।
दुर्गा देवी मंदिर कैसे पहुंचे
राष्ट्रीय राजमार्ग 534 पर कोटद्वार शहर से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मां दुर्गा का सुंदर मंदिर स्थित है जो “दुर्गा देवी” के नाम से प्रसिद्ध है। गढ़वाल के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले कोटद्वार शहर से जैसे ही पहाड़ों में प्रवेश करते हैं तो राष्ट्रीय राजमार्ग 534 के दाईं ओर खो नदी के तट पर हनुमान जी को समर्पित एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है सिद्ध स्थान सिद्धबली धाम के दर्शन होते हैं। उसके बाद रास्तों में अनेक छोटे-बड़े झरनो के साथ साथ माँ दुर्गा देवी का मंदिर व अन्य छोटे-बड़े मंदिरों के दर्शन होते रहते हैं।
यह राष्ट्रीय राजमार्ग 534 नजीबाबाद, कोटद्वार, दुगड्डा, पौड़ी गढ़वाल को बद्रीनाथ से जोड़ती हैं। यह कोटद्वार से लगभग 13 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट को की देहरादून में स्थित है यह कोटद्वार से लगभग 104 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है।
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